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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 103 (iii) देशियगण : ___ मूलसंघ के गणों में सबसे प्रमुख गण देशियगण माना जाता है। कहीं-कहीं पर इस गण का नाम देशीगण भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस गण का उद्भव दक्षिण भारत के देश नामक ग्राम में लगभग ९वीं शताब्दी में हुआ था।' प्रो० जोहरापुरकर के अनुसार देशियगण पूज्यपाद देवनन्दि के शिष्य वज्रनन्दि से प्रारम्भ हआ था। पर्याप्त अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में इस गण से सम्बन्धित विशेष जानकारी ज्ञात नहीं होती है। (iv) सरस्थगण : सूरस्थगण का उल्लेख करने वाला प्राचीनतम अभिलेख 1054 ई० का है। इस गण की उत्पत्ति सम्भवतः सौराष्ट्र क्षेत्र में हुई है। यह गण प्रारम्भ में सेनगणे से सम्बन्धित था। एक अभिलेख में इस गण का सम्बन्ध द्राविडान्वय से भी बतलाया गया है। ___ इस गण से सम्बन्धित विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है / (v) बलात्कार गण : __ बलात्कार गण का प्रारम्भ देवनन्दि के शिष्य गुणनन्दि से माना जाता है / सम्भवतः इस गण की उत्पत्ति बलहार नामक स्थान से हुई है। इस गण का उल्लेख करने वाला प्राचीनतम अभिलेख 1071 ई० का उपलब्ध होता है जिसमें इस गण के आचार्य श्रीचन्द का नाम भी उल्लिखित है। 1371 ई. के एक अन्य अभिलेख में इस गण के आचार्य सिंहनन्दि का उल्लेख मिलता है। : शāजय से प्राप्त एक अभिलेख में इस गण की गुरू परम्परा इस 1. चौधरी, गुलाबचन्द्र-दिगम्बर जैन संघ के अतीत की झांकी, ... उद्धृत-भिक्ष स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ 215 / 2. दूबे, श्रीनारायण-जैन अभिलेखों का सांस्कृतिक अध्ययन ( शोध प्रबन्ध ), पृष्ठ 61 3. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 185 4. दिगम्बर जैन संघ के अतीत को झांकी, - उद्धृत-भिक्षु स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ 295 5. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 1, क्रमांक 154 6. वही, भाग 3, क्रमांक 569
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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