________________ जनधर्म के सम्प्रदाय : 95 और एक संघ, एक आचार्य एवं एक समाचारी की कल्पना मूर्तरूप नहीं ले सकी। किन्तु कान्फ्रेंस ने अपना यह प्रयास आगे भी जारी रखा और सन् 1952 में सादड़ी मारवाड़ में पुनः एक ऐसे ही सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में स्थानकवासी परम्परा के 32 सम्प्रदायों में से 22 सम्प्रदायों के आचार्य, प्रवर्तक एवं साधु-साध्वियाँ सम्मिलित हुए, तत्पश्चात् उन्होंने अपनी-अपनी पदवियों को छोड़कर एक आचार्य के अधीन एक समाचारी का पालन करने हेतु सन् 1952 में श्रमण संघ की स्थापना की थी। इस संघ के प्रथम आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज एवं उपाचार्य 'श्री गणेशीलालजी महाराज बने थे। किन्तु कुछ समय पश्चात् जब श्रमण संघ में साधु-साध्वियों में समाचारो एवं प्रायश्चित व्यवस्था के प्रश्न पर विवाद उत्पन्न हुए तो उसमें सम्मिलित कुछ सम्प्रदायों ने इस संघ से अलग होकर अपने-अपने पूर्व सम्प्रदायों को पुनर्जीवित किया / श्रमण संघ से अलग होने वालों में उपाचार्य श्री गणेशीलालजी म. सा०, उपाध्याय श्री हस्तीमलजी म. सा., प्रवर्तक श्री पन्नालालजी म. सा. एवं प्रवर्तक श्री मदनलालजी म. सा. के नाम प्रमुख हैं। श्रमणसंघ की स्थापना के पूर्व की स्थानकवासी सम्प्रदाय की आचार्य 'परम्परा का उल्लेख श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री एवं श्री सौभाग्यमुनि 'कुमुद' ने विस्तारपूर्वक किया है. इसलिए हम वह विवरण यहां नहीं दे रहे हैं। . श्रमण संघ की स्थापना से वर्तमान काल तक तीन आचार्य हुए हैं (1) आचार्य श्री आत्मारामजी म. सा., (2) आचार्य श्री आनन्द ऋषि :. जी म० सा० और (3) वर्तमान आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी।। - अमूर्तिपूजक परम्परा के साधु-साध्वियों को दृष्टि से देखें तो ज्ञात होता है कि यह सम्प्रदाय उसका सबसे बड़ा घटक है। इस समय श्रमण संघ में लगभग 900 सन्त-सतियांजी हैं। 2. साधुमार्यो संघ: जैन धर्म के चतुर्विध संघ में समय-समय पर ऐसे दृष्टान्त देखने को 1. अमृत महोत्सव गौरव ग्रन्थ, परिच्छेद 1, पृष्ठ 8-9 2. (क) शास्त्रो, देवेन्द्र मुनि-जैन परम्परा और इतिहास, उद्धृत-पृष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ, खण्ड 8, पृ० 68-88 (ख) सौभाग्यमुनि "कुमुद" जैन परम्परा एक ऐतिहासिक यात्रा, उद्धृत-श्री अम्बालालजी म. सा. मशिनन्दनः मन्थ, पृ० 485-535