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________________ अगल के सम्प्रदाय : 91 तो यहाँ तक कह दिया है कि भुमि भावहर्ष से इस गच्छ की उत्पत्ति हुई थो।' जिस अभिलेख को आधार बनाकर विद्वानों ने इस गच्छ का उल्लेख किया है, वह अभिलेख इस प्रकार है "ॐ 11 सं० १०९-वैशाख वदि 5 प्रतिमा कारितेति // " बालोतरा से प्राप्त इस अभिलेख में कहीं पर भी इस गच्छ का नामोल्लेख तक नहीं हुआ है। इस अभिलेख को ही आधार बनाकर कुछ विद्वानों ने भावहर्षगच्छ को स्वतन्त्र गच्छ मानने की जो कल्पना की है,. वह उचित नहीं है / वस्तुतः इस नाम का कोई मच्छ या ही नहीं। 74. धनेश्वर गच्छ : अभिलेखों का सावधानीपूर्वक अध्ययन नहीं कर पाने के कारण कुछ विद्वानों ने धनेश्वर गच्छ को भी एक स्वतन्त्र गच्छ मान लिया है, जबकि धनेश्वर किसी आचार्य का नाम था, गच्छ का नाम नहीं। धनेश्वर गच्छ. की कल्पना मुनि उत्तम कमल और श्रीमती ( डॉ० ) राजेश जैन ने घटियाल से प्राप्त एक अभिलेख के आधार पर की है। यद्यपि मुनि उत्तमकमल ने इस गच्छ का नामोल्लेख करने वाले अभिलेख की तिथि के. सन्दर्भ में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा है, किन्तु श्रोमतो जैन ने इस अभिलेख का समय 861 ई० माना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि इस गच्छ को उत्पत्ति धनेश्वरसूरि के नाम पर की गई होगो।। घटियाल से प्राप्त इस अभिलेख का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि इस अभिलेख में 'धनेश्वर' के साथ षष्ठी विभक्ति तथा 'गच्छ' के. साथ सप्तमो विभक्ति का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ 'धनेश्वरगच्छ' नहीं है, अपितु "धनेश्वर के गच्छ में" ऐसा अर्थ है। इससे यहो फलित होता है कि धनेश्वर किसी आचार्य का नाम रहा होगा, गच्छ का नहीं। .. खोज करते-करते आचार्य धनेश्वरसूरि का नामोल्लेख हमें 1461 ई०. 1. मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ० 87 2. जैन लेख संग्रह, भाग 1, क्रमांक 746 3. Jain sects and schools, p. 52 4. मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म, पृ० 87 5. "अनिमे परस्स गम्मि" -न लेख संग्रह, भाग 1, क्रमांक 945
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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