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________________ पंचतीर्थी पर अंकित है। इस लेख से अन्य कोई विशेष जानकारी तो ज्ञात नहीं होती है, किन्तु लेख में किन्हीं विनयकीर्तिसूरि का नाम अवश्य उल्लिखित है जो सम्भवतः इस गच्छ के ही कोई प्रभावक आचार्य रहे होंगे। 71. कडुबामति गच्छ: 1426 ई० से 1728 ई. तक के कुल चार अभिलेखों में इस गच्छ. का नामोल्लेख मात्र मिलता है। इस गच्छ की उत्पत्ति एवं मान्यता सम्बन्धी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 72. उद्योतनाचार्य गच्छ : पल्लीकीय गच्छ से उत्पन्न इस गच्छ का उल्लेख 1629 ई. के एक अभिलेख में मिलता है। इस अभिलेख में तपागच्छाधिराज भट्टारकहीरविजयसूरि, पट्टधर विजयसेनसूरि और भट्टारक विजयदेवसूरि आदि मुनियों के नाम मिलते हैं। इस गच्छ के सन्दर्भ में और अधिक जानकारी शात नहीं हो सको है। 72. भावहर्ष गच्छ: राजस्थान में बालोतरा से एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिसको आधार बनाकर कुछ विद्वानों ने भावहर्ष गच्छ को एक सातन्त्र गच्छ माना है। इस अभिलेख को मुनि उत्तमकमल ने संवत् 109 का माना है। बो कि सही नहीं है। यह अभिलेख देवनागरी लिपि में लिखा हया है। जबकि संवत् 109 अर्थात् ई० सन् 52 के समय देवनागरी लिपि का प्रचलन हो नहीं था। उस समय ती ब्राह्मी लिपि का प्रचलन था। हमें ऐसा लगता है कि अभिलेख उत्कीर्णक अथवा पुस्तक मुद्रक को त्रुटि को ही यथार्थ मानने के कारण मुनिजी को यह भ्रान्ति हुई है। इस अभिलेख का समय संवत् 1009 अर्थात् ई० सन् 952 होना चाहिए। श्रीमती ( डॉ. ) राजेश जैन ने बालोतरा से प्राप्त इसी अभिलेख के. आधार पर इस गच्छ को न केवल स्वतन्त्र गच्छ माना है वरन् उन्होंने 1. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 265, 109, 108, 223 2. जैन लेख संग्रह, भाग 1, क्रमांक 825 3. वही, क्रमांक 736 4. Jain sects and schools, p.52
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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