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________________ राजर्षि कुमारपाल 25 स्वयं आचार्य हेमचन्द्र भी, उक्त महावीरचरित्र नामक पुराणग्रन्थमें महावीरके मुखसे कुमारपालके विषयमें भविष्यकथन सूपसे वर्णन करते हुए लिखते हैं कि पाण्डप्रभृतिभिरपि त्यक्ता या मृगया नहि / स स्वयं त्यक्ष्यति जनः सर्वोऽपि तवाज्ञया / हिंसानिषेधके तस्मिन् दूरेऽस्तु मृगयादिकम्। अपि मत्कुट-यूकादि नान्त्यजोऽपि हनिष्यति॥ तस्मिन्निषिद्धे पापविरण्ये मृगजातयः। सदाऽप्यविनरोमन्था भाविन्यो गोष्ठधेनुवत् // जलचरस्थलचरखेचराणां स देहिनाम् / रक्षिष्यति सदामारि शासने पाकशासनः॥ ये पाजन्मापि मांसादास्ते मांसस्य कथामपि / दुःस्वामिव तस्याज्ञावशान्नेष्यन्ति विस्मृतिम् // भगवान् महावीर अपने शिष्योंसे कहते हैं कि-भविष्यमें कुमारपाल राजा होने वाला है उसकी आज्ञासे. सब मनुष्य मृगयाका त्याग करेंगे। जिस मृगयाका पांडुके सदृश धर्मिष्ठ राजा भी त्याग न कर सके और न करवा सके / हिंसाका निषेध करने वाले इस राजाके समयमें शिकारकी बात तो दूर रही खटमल और जूं जैसे जीवोंको, अन्त्यज जन भी दुःख नहीं पहुँचा सकेंगे। इस प्रकार मृगयाके विषयमें निषेधाज्ञा होने पर, मृग आदि पशु निर्भय हो कर बाड़ेमें गायोंकी तरह चरने लगेंगे। इस प्रकार जलचर प्राणियों, पशुओं और पक्षिओंके लिए वह सदा अमारि रखेगा और उसकी ऐसी आज्ञासे आजन्म मांसाहारी भी दुःखप्नकी तरह मांसको भूल जाएँगे। ... कुमारपालकी ऐसी अमारिप्रिय वृत्ति देख कर उसके पड़ोसी और अधीन राजाओंने भी अमारि प्रवर्तनकी उदोषणा करनेके लिए कई आज्ञाएं जाहिर की थी जिसके प्रमाणमें कई शिलालेख मारवाड़ की परली सरहदमें मिलते हैं। कुमारपालकी इस अहिंसाप्रवर्तक नीतिका यह फल है कि वर्तमानमें, जगत्में सबसे ज्यादा अहिंसक प्रजा गुजराती प्रजा है और सबसे अधिक परिमाणमें अहिंसा धर्मका पालन गुजरातमें होता है। गुजरातमें हिंसक-याग प्रायः तभीसे बन्द हो गए हैं और देवी देवताओंके लिए होने वाला पशु-वध भी, दूसरे प्रान्तोंकी तुलनामें, गुजरातमें बहुत कम है / प्रायः गुजरातका संपूर्ण शिष्ट और उच्च समाज चुस्त निरामिषभोजी है। गुजरातका प्रधान किसान वर्ग भी मांसत्यागी है / भले ही अतिशयोक्ति हो, और उसका उपहास भी हो, परन्तु मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि इसी पुण्यमय परम्परा के प्रतापसे जगत्के सबसे श्रेष्ठ अहिंसामूर्ति महात्माको जन्म देनेका अद्वितीय गौरव भी गुजरातको प्राप्त हुआ है। मद्यपानका निषेध जीवहिंसाके साथ साथ जिन दूसरी पाप प्रवृत्तियोंका कुमारपालने अपनी प्रजामें निषेध कराया था उनमें मुख्य मद्यपानकी प्रवृत्ति मी थी। मद्य मनुष्य जातिका एक बहुत बड़ा शत्रु है, यह सब जानते हैं। पौराणिक कालमें यादवो का नाश भी मद्यपानसे ही हुआ था ऐसा पुराणोंमें वर्णन आता है। ऐतिहासिक कालमें भी मद्यपानके कारण अनेक साट् और उनके साम्राज्य नष्ट होनेके उदाहरण यथेच्छ प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमानमें क्षत्रिय जातिका जो भयंकर पतन हुआ है और हो रहा है, उसमें मद्यका ही सबसे ज्यादा हाथ है। हमारी गरीब और परिश्रमी जनताकी जो इतनी बात दशा हुई है उसमें मद्य भी एक मुख्य कारण है, यह हम लोग अच्छी तरह जानते हैं। मथके इस बुरे असरको अल्पमें रख कर मध्य कालमें कितने ही मसलमान सम्राटोंने इसका जो तीव्र निषेध किया था उससे इतिहासके पाठक अपरिचित नहीं है। अमेरिका जैसे भौतिक संस्कृतिके उपासक राष्ट्रने भी इस बीसवी सदीमें इस उन्मादक मद्यपानको रोकके लिए राजाज्ञाका उपयोग किया है।
SR No.004294
Book TitleKumarpal Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhsuri
PublisherSinghi Jain Shastra Shikshapith
Publication Year1956
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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