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________________ राजर्षि कुमारपाल [गुजरातकी सुप्रतिष्ठित 'गुजरातीसाहित्यपरिषत्' द्वारा, वि. सं. 1995 में, गुजरातकी प्राचीन राजधानी अणहिलपुर पाटण में, 'हमसारखतसत्र के रूपमें एक विद्वत्सम्मेलन का आयोजन किया गया था। उस सत्र में पढ़नेके लिये मैंने राजर्षि कुमारपाल नामका गुजराती भाषामें निबन्ध लिखा था जो मेरे संपादकत्वमें प्रसिद्ध होने वाले 'भारतीयविद्या' नामक संशोधनात्मक त्रैमासिक पत्रके वर्ष 1, अंक 3 में प्रकट हुआ था। उस गुजराती निबन्धका हिन्दी अनुवाद, बनारसकी 'जैन संस्कृति संशोधन समिति' (Jain Culture and Research Society) ने सन् 1949 में प्रकाशित किया था। प्रस्तुत 'कुमारपाल चरित्र संग्रह के विषयक माथ, इस प्रवन्धका विशिष्ट सम्बन्ध होनेसे हम यहां पर इसको भी संग्रहित कर देना उचित समझते हैं। इस निवन्धके पढनेसे विज्ञ पाठकोंको प्रस्तुत विषयमें कुछ विशेष ऐतिय तथ्य ज्ञात हो सकेंगे। इसके लिये मैं उक्त समितिके मंत्री प्राध्यापक पंडितवय्ये श्रीदलमुखभाई मालवणियाके प्रति अपना कृतज्ञभाव प्रकट करना चाहता हूं। -मुनि जिन विजय] कुमारपाल- एक धीरोदात्त नायक राजा कुमारपालका जीवन गुजरातके इतिहासमें महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। केवल गुजरातमें ही नहीं बल्कि भारतीय इतिहासमें भी उसका विशिष्ट स्थान है / वह एक साधारण नरेश न था। उसमें अनेक असाधारणताएँ विद्यमान थीं। मनुष्य जीवनकी ऊँची-नीची सभी दशाएँ उसके जीवन में निहित थीं। उसे सुख और दुःखकी अनेक अनुभूतियाँ हुई थीं। उसका जीवन एक महाकाव्यके समान था जिसमें शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत और शान्त इस प्रकार सभी रसोंका परिपाक हुआ था। उसकी जीवनरूप कवितामें माधुर्य, ओज और प्रसादका अनोखा सम्मिश्रण था। देशत्याग, संकट, सहाय-असहाय, क्षुधा-तृपा, भिक्षायाचन, हर्ष, शोक, अरण्याटन, जीवितसंशय, राज्यप्राप्ति, युद्ध, शत्रुसंहार, विजययात्रा, नीतिप्रवर्तन, धर्मपालन, अभ्युदयारोहण और अन्तमें अनिच्छित भावसे मरण -- इत्यादि एक महाख्यायिकाके वर्णनके लिए आवश्यक सभी रसोत्पादक सामग्री उसके जीवनमें विद्यमान थी। काव्य-मीमांसकोंने काव्यके लिए जो धीरोदात्त नायककी रम्य कल्पना की है उसका वह यथार्थ आदर्श था / उसका जीवन अपकर्ष और उत्कर्षका क्रीडाक्षेत्र था / उसका पूर्ण इतिहास हमें उपलब्ध नहीं है। जो कुछ थोड़ी बहुत ऐतिहासिक सामग्री उप लब्ध है वह अपूर्ण, अस्तव्यस्त और किश्चित् अतिशयोक्तिवाली है; तो भी इस सामग्री परसे गुजरातके किसी दूसरे राजाकी अपेक्षा उसका अधिक विस्तृत और प्रमाणभूत इतिहास प्राप्त हो सकता है। गुजरातके बाहर भी किसी पुराने भारतीय राजाका इतना विस्तृत जीवनवृत्त प्राप्त नहीं है / इस सामग्रीसे उसके कुल, वंश, जन्म, बाल्यावस्था, यौ.वन, देशाटन, संकटसहन, राज्यप्राप्ति, राजशासन, धर्माचरण आदि बातोंका यथार्थ परिचय मिलता है / उसके राज्यके प्रधान पुरुपों, मुख्य प्रजाजनों, धर्मगुरुओं और विद्वानोंका परिचय भी इस उपलब्ध सामग्रीसे मिल सकता है। उसके लोकोपयोगी और धर्मोपयोगी कार्योंकी रूपरेखा भी इसमें है / मैं यहाँ उसीका कुछ दिग्दर्शन कराना चाहता हूँ। कुमारपालके जीवनकी सामग्री .. ऐतिहासिक दृष्टिसे कुमारपालके राजजीवनका जो रेखाचित्र मैं खींचना चाहता हूँ उसकी सामग्री प्रमाणभूत और सर्वथा विश्वसनीय है / इस सामग्रीका श्रेय प्रायः कुमारपाटके थोड़े या बहुत संपर्कमें आने वाले व्यक्तियोंको है। इसमें मुख्य सूत्रधार हैं कुमारपालके गुरु और गुर्जर विद्वानोंके मुकुटमणि आचार्य हेमचन्द्र / हेमचन्द्राचार्यके व्यक्तित्व और कार्यके विषयमें बहुत कुछ कहा जा चुका है / उसका पुनः कथन और पिष्टपेषण अनावश्यक है / इन्होंने 'संस्कृतद्वयाश्रय' काव्यके अन्तिम पाँच सोंमें और 'प्राकृतद्वयाश्रय'के आठ सोंमें कुमारपालका काव्यमय जीवन चित्रित किया है। हेमचन्द्रका यह चित्रण कुमारपालके राज्याभिषेकसे प्रारम्भ होता है / इसमें ऐतिहासिक घटनाओंका उल्लेख नहींके बराबर है। फिर भी
SR No.004294
Book TitleKumarpal Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhsuri
PublisherSinghi Jain Shastra Shikshapith
Publication Year1956
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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