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________________ कुमारपालचरित्रसंग्रह-प्रस्तावनादि वक्तव्य मानना चाहिए / " विदेसी विद्वान् प्रोफेसरके इन वचनोंमें हम इतने शब्द और मिलायेंगे, और कहेंगे कि-"वे एक बडे भारी महात्मा थे, पूर्ण योगी थे, उत्कृष्ट जितेन्द्रिय थे, अत्यंत दयालु थे, महापरोपकारी थे, पूरे निःस्पृही थे, निःपक्षपाती थे, सत्यके उपासक थे, और कलिकालमें सर्वज्ञ थे।" आपके जीवनसे, 'संसारका बहुत उपकार हुआ, जैनधर्मका उद्धार हुआ और सत्यका प्रचार हुआ। नमन है महात्मन् ! तुम्हारे पवित्र जीवनको! वंदन है भगवन् ! आपके सम्यग ज्ञान, दर्शन और चारित्र को !! राजर्षि श्री कुमारपाल देव / सत्वानुकम्पा न महीमा स्यादित्येष कृप्तो वितयः प्रवादः / जिनेन्द्रधर्म प्रतिपद्य येन, श्लाध्यः स केषां न कुमारपालः // - श्रीसोमप्रभाचार्यः / - व्यावहारिक जीवन महाराज कुमारपाल देव इस कलियुगमें एक अद्वितीय और आदर्श नृपति थे। वे बडे न्यायी, दयालु, परोपकारी, पराक्रमी और पूरे धर्मात्मा थे। विक्रम संवत् 1149 में इनका जन्म हुआ था और संवत् 1199 में राज्याभिषेक हुआ था। एक पुरातन पट्टावलीमें राज्याभिषेककी तिथी 'मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी' लिखी है / राज्यप्राप्तिके बाद लगभग 10 वर्षपर्यंत आपने राज्यकी मुव्यवस्था करनेका, और उसकी सीमा बढानेका प्रयत्न किया / दिग्विजय करके आपने अनेक बडे बडे राजाओंको अपनी प्रचंड आज्ञाके अधीन किये। आप अपने समयमें एक अद्वितीय विजेता और वीर राजा थे। भारतवर्ष में, उस समय आपकी बराबरी करने वाला और कोई राजा नहीं था। आपका राज्य बहुत बड़ा था। श्री हेमचंद्राचार्यने 'महावीरचरित' में आपकी आज्ञाका पालन "उत्तर दिशामें तुरकस्थान, पूर्वमें गंगा नदी, दक्षिणमें विण्याचल और पश्चिममें समुद्र पर्यत" के देशोंमें होना लिखा है / प्रोफेसर मणीलाल नभुभाई द्विवेदी लिखते हैं कि-"गुजरात यानि अणहिल्लवाडके राज्यकी सीमा बहुत विशाल मालूम देती है / दक्षिणमें ठेठ कोलापुरके राजा उसकी आज्ञा मानते थे, और भेंट भेजते थे। उत्तरमें काश्मीरसे भी भेटें आती थी। पूर्वमें चेदी देश तथा यमुना पार और गंगा पार के मगधदेश पर्यंत आज्ञा पहुंची थी। और पश्चिममें सौराष्ट्र तथा सिंधु देश तथा पंजाब का मी कितनाक हिस्सा गुजरातके ताबेमें था / 'राजस्थान इतिहास' के कर्ता कर्नल टॉड साहब को, चितौडके किलेमें, राणा लखणसिंहके मंदिरमें एक शिलालेख मिला था, जो संवत् 1207 का लिखा हुआ है। उसमें महाराज कुमारपालके विषयमें लिखा है कि “महाराज कुमारपालने अपने प्रबल पराक्रमसे सब शत्रुओंको दल दिये, जिसकी आज्ञाको पृथ्वी परके सब राजाओंने अपने मस्तक पर चढाई / जिसने शाकंभरीके राजाको अपने चरणोंमें नमाया। जो खुद हथियार पकड कर सवालक्ष (देश) पर्यंत चढा और जिसने सब गढ़पतियोंको नमाया। सालपुर (पंजाब) तक को भी उसने उसी तरह वश किया / " (वेस्टर्न इण्डिया, टॉड कृत) इन सब प्रमाणोंसे महाराज कुमारपालके राज्यके विस्तारका खयाल हो जाता है। भारतवर्षमें. इतने बड़े साम्राज्यको भोगने वाले राजा बहुत कम हुए। आपकी राजधानी अनहिलपुर-पाटन, भारतके उस समयके सर्वोत्कृष्ट नगरोंमें से, एक थी। वह व्यापार और कला-कौशलसे बहुत बढी चढी थी, समृद्धिके शिखर पहुंची हुई थी। राजा और प्रजाके सुंदर महालोंसे तथा पर्वतके शिखरसे ऊंचे और मनोहर देवभुवनोंसे अत्यंत अलंकृत थी। हेमचंद्राचार्य ने 'द्याश्रय महाकाव्य में इस नगरी का बहुत वर्णन किया है / सुना जाता है कि उस समय इस नगर में 1800 तो कोडाधिपति रहते थे। इस प्रकार महाराज एक बडे भारी महाराज्यके खामी थे /
SR No.004294
Book TitleKumarpal Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhsuri
PublisherSinghi Jain Shastra Shikshapith
Publication Year1956
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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