________________ कुमारपालचरित्रसंग्रह-प्रस्तावनादि वक्तव्य सूरीश्वरकी ज्ञानशक्ति-ग्रंथनिर्माणकार्य भगवान् हेमचंद्राचार्यके जीवनको जगत्में शाश्वत प्रकाशित रखने वाला और अन्य धर्मियोंको भी आश्चर्य उत्पन्न करने वाला, उनका अगाध ज्ञानगुण था। उनके जैसा सकल शास्त्रोंमें पारंगत, ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। इस अपरिमित ज्ञानशकिसे मोहित हो कर, तत्कालीन सर्व धर्मके विद्वानोंने 'कलिकालसर्वज्ञ' जैसी महती उपाधि, उनको समर्पण की थी। सचमुच ही आप 'कालिकालसर्वज्ञ' थे, इसमें जरा भी अत्युक्ति नहीं। इस बातकी सध्यता आपकी अपार ग्रंथरत्नराशी, आज मी जगतको करा रही है। आपके ग्रंथोंके समूहको देख कर पाश्चात्य विद्वान् भी, विस्मित होते हैं। वे भी आपको 'ज्ञान के महासागर' (Ocean of the Knowledge) कह कर उल्लिखित करते हैं। कहा जाता है कि आपने अपने जीवन कालमें 35000000 (साढे तीन कोड) लोक प्रमाण ग्रंथ लिखे थे। परंतु भारतवासियोंके दुर्भाग्यसे बहुतसे ग्रंथ तो कालके कराल गालमें दब गये-नष्ट हो गये / इतना होने पर भी, जितने ग्रंथ वर्तमान कालमें विद्यमान हैं, वे भी थोडी संख्या वाले नहीं हैं। विद्यमान प्रथश्रेणी ही आज विद्वत्समूहको विस्मय करा रही है। विद्याके सकल विषयोंमें आपकी अबाधित गति थी। कोई भी विषय ऐसा नहीं था कि जिसका आपने अव-. गाहन नहीं किया हो या जिसके ऊपर, अपनी चमत्कारिक लेखिनी न उठाई हो ! व्याकरण, न्याय, काव्य, कोष, अलंकार, छंद, नीति, स्तुति इत्यादि सब विषयों पर आपने एक या अनेक ग्रंथ लिखे हैं। कई कई ग्रंथ तो ऐसे अपूर्व है कि जिनकी समानता करने वाले, भारतमें दूसरे ग्रंथ ही नहीं हैं। हमारी बहुत इच्छा थी कि, हम इस लेखमें बापके ग्रंथोंका विस्तारसे उल्लेख करेंगे। परंतु लेख बढ जानेके कारण, स्थानाभाव हो जानेसे, इस इच्छाको पूरी नहीं * कर सके / आपके ग्रंथोंका समूह इतना बडा और विचित्र है कि यदि उसका विस्तारसे विवेचन किया जाय तो एक बडी पुस्तक ही बन जाय / शिष्यश्रेणि और शरीरांत सूरि भगवान्का शिष्यसमूह बहुत बडा और प्रभावशाली था / साधुसमुदायमें, प्रबंधशतकर्ता श्रीरामचंद्र, . महाकवि श्री बालचंद, अनेकविधासंपन्न श्री गुणचंद्र, विद्याविलासी श्री उदयचंद्र - इत्यादि मुख्य थे। श्रावकसमुदायमें, महाराज श्री कुमारपाल देव, महामात्य श्री उदयन, राजपितामह आम्रभट, दंडनायक श्री वाग्भट, राजघरट्ट श्री चाहर, सोलाक इत्यादि अनेक राजवर्गीय तथा लक्षावधि प्रजावर्गीय श्रीमंतादि थे। इस प्रकार बहुत समय तक अपने ज्ञानपुंजके पवित्र प्रकाशसे सूरीश्वरजीने भारत को प्रकाशित किया। अपने वायुकी समाप्तिका समय प्राप्त हुआ देख, भगवान्ने सकल शिष्यगणको समीपमें बुलाया। आत्मिक उन्नतिके विषयमें विविध प्रकारके हितकर वचनों द्वारा अमृततुल्य उपदेश दिया, जिसे सुन कर महाराज कुमारपालका हृदय भर आया / सूरि महाराजने उनको सांत्वन करनेके लिए अनेक मिष्ट वचन कहे। अंतसमयमें आपने निरंजन, निराकार और सहजानंदित परमात्माका पवित्र ध्यान धरते हुए बहिर्वासनाका त्याग किया। विशुद्ध आत्मपरिणतिमें रमण करते हुए, निर्मल समाधिसहित दशम द्वारसे प्राणत्याग किया। संवत् 1229 में सारे समाजको शोकसमुद्रमें डूबो कर, इस भूमंडल परसे कलिकाल सर्वज्ञ भगवान् श्रीहेमचंद्राचार्यरूप वह लोकोत्तर चंद्र, अस्त हो गया ! उपसंहार पाठको। सूरि भगवानके इस चरित्र-सारांशसे आपको यह ज्ञात हो जायगा कि, वे कैसे प्रभावशाली पुरुष थे, उनमें कैसे कैसे गुणोंका सनिपात हुआ था ! सचमुच ही वे एक अद्वितीय महात्मा थे / उनके गुणोंका वर्णन करते हुए प्रो. पीटरसन लिखते हैं कि-"हेमचंद्र एक बडे भारी आचार्य थे / दुनियाके किसी भी पदार्थ पर उनका तिल मात्र भी मोह नहीं था; तथा उस महापुरुषने अपनी बडी आयु और जोखमदार जिंदगीको बुरे कार्मोमें न लगा कर, संसार का भला करनेमें बीताई थी। उनके किये हुए पकयोंके बदल इस देशकी प्रजाको उनका बड़ा भारी उपकार