________________ कुमारपालचरित्र संग्रह मालूम देता है कि इस प्रबन्धकी रचना प्रबन्धचिन्तामणि आदि जैसे कुछ पुरातन प्रकीर्ण प्रबन्धोंके वाधार पर की गई है। इसमें जो पद्यभाग है वह प्रायः सारा ही अन्यान्य ग्रन्थोंमेंसे उद्धृत किया गया है। जो गद्य भाग है वह कुछ संग्राहकका खयं संकलित किया हुभा और कुछ प्रथित किया हुआ है / ग्रन्थकर्ता अन्तमें कहते हैं कि कुछ तो गुरुमुखसे जो मुना उस परसे और कुछ जो लिखित रूपमें मिला है उसके आधारसे, मैंने यह कुमारपाल राजाका प्रबन्ध निर्मित किया है। जिनमण्डन गणीने अपने कुमारपाल प्रबन्धकी रचना प्रायः इसी प्रबन्धके आधार पर की मालूम देती है। वर्णन क्रम एवं, रचनाशैलीकी समानताके उपरान्त, बहुतसे वाक्यसन्दर्भ मी दोनोंमें एकसे मिलते हैं। जिनमण्डन गणीके कुमारपाल प्रबन्धकी रचना वि. सं. 1499 में पूर्ण हुई थी इसलिये वह प्रस्तुत प्रबोधप्रबन्धके बादकी रचना है इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं है। क्यों कि जिस प्रतिके आधार परसे यह प्रबन्ध यहां मुद्रित किया गया है उसकी प्रतिलिपि ही सं. 1464 में अर्थात् जिनमण्डन गणीकी रचना के 35 वर्ष पूर्व हुई थी। जैसा कि ऊपर सूचित किया गया है-यह प्रबन्ध भिन्न भिन्न प्राचीन चरितों-प्रबन्धोंके उद्धरणों और अवतरणोंका एक संग्रहात्मक संकलनसा है। इसके प्रारंभ भागमें, 200 पदों वाला वह संक्षिप्त चरित, जो इस संग्रहमें प्रथम कृतिके रूपमें मुद्रित किया गया है, पूर्ण रूपसे अन्तर्मपित कर लिया गया है / इसी तरहसे प्रबन्धचिन्तामणि आदि ग्रन्थोंमें जो वर्णन है उसके भी अनेक अंश यथावत् संकलित कर लिये गये हैं। इस प्रकार इस प्रबन्धमें चरित्रात्मक वर्णनके सिवा उपदेशात्मक और प्रचारात्मक उद्धरणोंका मी खूब संग्रह किया गया है और इसीलिये संग्राहक विद्वान्ने इसका नाम कुमारपालचरित्र या कुमारपालप्रबन्ध न रख कर कुमारपालप्रबोधप्रबन्ध रखना योग्य माना है। - इस प्रबन्धमें कुमारपालके जीवनविषयकी मुख्य मुख्य घटनाओंका क्रमबद्ध वर्णन दिया गया है जिनका उल्लेख पूर्वकालीन चरित्र प्रन्थोंमें और प्रबन्धोंमें एक या दूसरे रूपमें मिलता है / साथमें प्रसंगोपात्त उपदेशात्मक उल्लेख मी विस्तृत रूपमें संगृहित किये गये हैं जिससे एक प्रकारसे धार्मिक कथाग्रन्थका स्वरूप इसे प्राप्त हो गया है। (४)चतुरशीतिप्रबन्धान्तगेत कुमारपालदेवप्रबन्ध - यह इस संग्रहमें 5 वीं कृति है / राजशेखर सूरिने जो प्रबन्धकोश नामक ग्रन्थ बनाया है उसमें कुल मिला कर 24 प्रबन्ध हैं जिसके कारण उस ग्रंथका दूसरा नाम चतर्विशतिप्रबन्ध मी सुप्रसिद्ध है। इसी तरहका एक चतुरशीतिप्रबन्ध नामका भी संग्रहात्मक ग्रन्थ है जिसमें कुल 84 प्रबन्धोंका संग्रह है। यह प्रबन्ध पूर्ण रूपमें मुझे कहीं नहीं देखनेमें आया / पूनाके राजकीय ग्रन्थसंग्रहमें एक प्राचीन प्रति उपलब्ध है जो खण्डित है। इसमें बहुतसे ऐसे ऐतिहासिक प्रबन्ध हैं जो प्रबन्धचिन्तामणिमें प्राप्त होते हैं। पुरातन प्रबन्धसंग्रह नामक ग्रन्थके संपादनमें, हमने जिस प्रकारके 3-4 प्रबन्धात्मक प्रकीर्ण संग्रहों परसे, ऐतिहासिक प्रबन्धोंका संकलन किया है उसी प्रकारके और प्रायः वैसे ही विषयोंके फुटकल प्रबन्ध, इस संग्रहमें मिलते हैं। इनमेंसे कुमारपाल राजाके जीवनके साथ संबन्ध रखनेवाले प्रबन्धोंको एकत्र रूपमें यहां पर संकलित किये हैं। जिस प्रतिपरसे यह संकलन किया गया है, वह है तो अच्छी पुरानी- हमारे अनुमानसे वि० सं० 1500 के पूर्वकी लिखी हुई होनी चाहिये-पर अशुद्ध बहुत है / इसकी भाषा मी बहुत सादी, कुछ अपभ्रष्ट और एक प्रकारसे बोलचालकी संस्कृत है जो लोकगम्य देश्य भाषाका अनुकरण सूचित करती है। मालूम देता है कि संस्कृत भाषा के प्रारंभिक शिक्षार्थियोंके पठन निमित्त, इसका संकलन किया गया है। इस संकलनमें, कुमारपालके जीवनके विषयकी कुछ ऐसी छोटी छोटी घटनाएं भी संगृहीत हैं जो अन्य प्रबन्धोंमें दृष्टिगोचर नहीं होती। भाचार्य हेमचन्द्रसूरिके प्रबन्धकी मी कुछ ऐसी बातें इस प्रबन्धमें लिखी हुई मिलती हैं जो अन्यत्र अप्राप्य हैं। यद्यपि ये बातें गौण वरूपकी हैं परन्तु कुछ विशिष्ट ऐतिहासिक तथ्योंको भी प्रदर्शित करती हैं। (5) सोमप्रभाचार्यकृत कुमारपालप्रतियोध संग्रहगत 5 वी रचनामें, सोमप्रभाचार्यकृत प्राकृत बृहत्काय ग्रन्थ कुमारपालप्रतिवोधका ऐतिहासिक सारभाग संकलित है। इस ग्रन्थकी एकमात्र प्राप्त पूर्ण प्रति पाटणके भण्डारमें सुरक्षित है जो ताडपत्रों पर,