________________ नीतिवाक्यामृतम् स्वामी की कृपा का स्वरूप(किं तेन स्वामिप्रसादेन यो न प्रयत्याशाम् / / 13 // ) स्वामी की उस प्रसन्नता से क्या लाभ जिससे आशा न पूर्ण हो। क्षुद्रमण्डल के दोष(क्षुद्रपरिषत्कः सर्पवानाश्रय इव न कस्यापि सेव्यः // 13 / / जिसकी सभा में क्षुद्र पुरुष हों अर्थात् जिसके परामर्श दाताओं के मण्डल में क्षुद्र विचार के लोग होते हैं उसका उस स्वामी का आश्रय कोई भी उसी प्रकार नहीं ग्रहण करता जिस प्रकार सर्प से बसे हुएं घर में कोई नहीं रहता। कृतघ्नता का दोष- , (अकृतज्ञस्य व्यसनेषु न सन्ति सहायाः॥१५॥) कृतघ्न पुरुष को दुःख पड़ने पर कोई सहायक नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति में विशेष गुण की आवश्यकता (अविशेषज्ञः शिष्टै श्रीयते / / 16 / / ) जिसमें कोई विशेष गुण नहीं होता शिष्ट पुरुष उसका आश्रय नहीं लेते। ___ अतिस्वार्थ का दोष(आत्मम्भरिः कलत्रेणापि त्यज्यते // 17 / / ) केवल अपना पेठ भरना जाननेवाले को अर्थात् अत्यन्त स्वार्थी को उसकी स्त्री भी छोड़ देती है। उत्साह की महिमा(अनुत्साहः सर्वव्यसनानामागमद्वारम् / / 18 // ) अनुत्साह सब प्रकार के दुःखों के आने का द्वार है / अर्थात् जहाँ उत्साह नहीं वहाँ अनेक आपत्तियां आती रहती हैं। उत्साह के गुण(शौर्यममर्षः शीघ्रकारिता सत्कर्मप्रवीणत्वमित्युत्साहगुणाः / / 16 / / पराक्रम, अन्यायी पर क्रोध और कार्यों को शीघ्र करना तथा सत्कर्म में कुशल होना ये उत्साह के गुण हैं। अन्यायाधरण का दोषअन्यायप्रवृत्तेन चिरं सम्पदो भवन्ति // 20 // अन्यायाचरण करनेवाली की सम्पत्ति चिरस्थायी नहीं होती। स्वेच्छाचार का दोषयत्किंचनकारी स्वैः परैर्वा हन्यते // 21 //