________________ 85 स्वामिसमुद्देशः बिना स्वामी की पूजा समृद्ध होने पर भी अपना उद्धार नहीं कर सकती। दृष्टान्त(अमूलेषु तरुषु किं कुर्यात् पुरुषप्रयत्नः // 1 // बिना जड़ के वृक्षों में पुरुष प्रयत्न करके भी क्या कर सकता है / असत्यवादिता के दोष(असत्यवादिनो विनश्यन्ति सर्वे गुणाः // 6 // असत्यवादी के सब गुण नष्ट हो जाते हैं / वञ्चक के दोष(वञ्चकेषु न परिजनो नापि चिरमायुः॥७॥ दूसरों को ठगने और धोखा देने वालों के समीप न तो सेवक होते हैं न वे दीर्घायु होते हैं। धनदाता की लोकप्रियतास प्रियो लोकानां यों ददात्यर्थम् // 8 // जो धन देता हैं वह लोकप्रिय होता है। प्रर्थात् दानी पुरुष शीघ्र ही सबका प्यारा बन जाता है / __ महान् दाता का स्वरूपस दाता महान् यस्य नास्ति प्रत्याशोपहतं चेतः // 6 // महान दाता वह है जिनके चित्त में दान के अनन्तर किसी प्रत्युपकार की आशा नहीं होती। (प्रत्युपकतरुपकारः सवृद्धिकोऽर्थन्यास इव // 10 // प्रत्युपकार करनेवाले के प्रति उपकार करना बढ़ने वाली धरोहर के समान है। . . उपकार प्रत्युपकार की परम्परा की आवश्यकतातिज्जन्मान्तरेषु न केषामृणं येषामप्रत्युपकारं परार्थानुभवनम् // 11 // ) जो बिना प्रत्युपकार के परोपकार करते हैं उनका वह परोपकार जन्मास्तर में ऋण तुल्य होता है / अर्थात् उपकार के बदले उपकार की भावना रखनी चाहिए और उपकार के बदले उपकार करते रहना चाहिए अन्यथा यह दूसरे का उपकार अपने ऊपर जन्मान्तर तक ऋण सा लदा रहता है। दृष्टान्त- (किं तया गवा या न क्षरति क्षीरं न गर्भिणी वा / / 12 // उस गाय से क्या लाभ जो न दूध देती है न गर्भिणी होती है ?