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________________ - 84 नीतिवाक्यामृतम् . किसी की जाति, अवस्था, सदाचार, और विद्या तथा ऐश्वर्य के अनुकूल वचन का प्रयोग न करना ही वाक् पारुष्य अर्थात् वाणी की कठोरता है। (स्त्रियम् , अपत्यं, भृत्यं वा तथोक्त्या विनयं ग्राहयेद् यथा हृदयप्रविष्टाच्छल्यादिव वचनतो न ते दुर्मनायन्ते // 26 // अपनी स्त्री, सन्तान और सेवक को ऐसे वचनों से विनयी बनावे जिससे वे हृदय में प्रविष्ट तीरफे समान दुःखद दुर्वचनों से दुःखी न हों) विधः परिक्लेशोऽर्थहरणं वा क्रमेण दण्डपारुष्यम् / / 30 // किसी का वधकर देना, जेल आदि में रख कर यन्त्रणा देना और धन छीन लेना ये क्रमश: दण्ड पारुष्य हैं। (एकेनापि व्यसनेनोपहतश्चतुरङ्गवानपि राजा विनश्यति किं पुनर्नाष्टादशभिः / / 31 // एक भी व्यसन में लिप्त राजा सेना, हाथी, घोड़ा और पैदल इन चतुरङ्गों से युक्त होने पर भी विनष्ट हो जाता है फिर अठारह दोषों से युक्त के विषय में तो कहना ही क्या है ? [इति व्यसन समुद्देशः] 17. स्वामि समुद्देशः / दो सूत्रों द्वारा 'स्वामी' के आवश्यक गुणों का वर्णन/धामिकः कुलाचारामिजनविशुद्धः प्रतापवान् नयानुगतवृत्तिश्च स्वामी // 1 // धार्मिक, विशुद्ध वंश, आचार और परिवार वाला, प्रतापशाली तथा नीति के अनुसार आचरण करने वाला जो हो वह स्वामी है / (कोपप्रसादयोः स्वतन्त्रता आत्मातिशयवर्धनं वा यस्यास्ति स स्वामी // 2 // क्रोध और प्रसाद में जो स्वतन्त्र हो अर्थात् क्रोध करे तो कुछ बिगाड़ सके और प्रसन्न हो तो कुछ दे सके तथा अपना उत्कर्ष करने में जो साधन सम्पन्न हो वह स्वामी है।) स्वामी को आवश्यकता(स्वामिमूलाः सर्वाः प्रकृतयो भवन्त्यभिप्रेतप्रयोजना नास्वामिकाः ॥शा समस्त प्रजा स्वामी के ही आधार से अपना अभीष्ट सिद्ध करने में समर्थ होती है बिना स्वामी के नहीं।) (अस्वामिकाः प्रकृतयः समृद्धा अपि निस्तरीतुं न शक्नुवन्ति // 4 / /
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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