________________ नीतिवाक्यामृतम् . घुगलखोर मनुष्य सबका अविश्वास पात्र बन जाता है) (दिवास्वापः सुप्तव्याधिव्यालानामुत्थापनदण्डः सकलकार्यान्तरायश्च // 13 // ) दिन में सोना शरीर के भीतर सुप्त अर्थात् छिपे हुए व्याधिरूप सो को उठा देने के लिये दण्ड के समान है और समस्त कार्यों में विघ्न उत्पन्न करने वाला है। आशय यह है कि दिन में सोने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं और बहुत से काम नहीं हो पाते, छूट जाते हैं। (न परपरिवादात्परं सर्वविद्वेषणभेषजमस्ति / / 13 / ) मनुष्य को सबका द्वेषपात्र बना देने के लिए परनिन्दा से बढ़ कर दुसरी औषध नहीं है / अर्थात् परनिन्दा में रत पुरुष सब लोगों से घृणा-पूर्वक देखा जाता है। (तौर्यत्रिकासक्तिः कं नाम प्राणार्थमानैर्न वियोजयति // 13 // नृत्य, गीत आदि में अत्यन्त आसक्ति प्राण, धन और सम्मान से किसे नहीं वियुक्त कर देती ?)नाचने-गाने में ही लगा रहनेवाला अर्थात् अत्यन्त भोगविलास में पड़ा हुआ आदमी अपनी जान से हाथ धो बैठता है, उसका धन नष्ट हो जाता है, और उसकी प्रतिष्टा धूल में मिल जाती है। वृथादया नाविधाय कमप्यनर्थ विरमति // 14 // व्यर्थ-बिना उद्देश्य के इधर-उधर घूमते रहने से कोई न कोई उपद्रव खड़ा ही हो जाता है। (अतीवेालुं त्रियस्त्यजन्ति निघ्नन्ति वा पुरुषम् / / 15 / / अत्यन्त ईष्यालु पुरुष को स्त्रिया या तो त्याग देती हैं अथवा मार डालती हैं। (परपरिग्रहाभिगमः कन्यादूषणं वा साहसं दशमुखदाण्डिक्यविनाशहेतुः सुप्रसिद्धमेव // 16 // 'पराई स्त्री से समागम अथवा किसी कन्या का शीलभंग रूपी साहस कर्म रावणादि दण्डधारियों के विनाश का कारण हुआ यह सुप्रसिद्ध ही है। यित्र नाहमस्मीत्यध्यवसायस्तत् साहसम् / / 17 / / जिस काम में मनुष्य 'मैं जीवित रहं या न रहे' इस तरह विचार कर प्राणों की बाजी लगा दे और उस काम को करे तो वह उसका साहस अर्थात् साहस का काम है। (अर्थदूषणः कुबेरोऽपि भवति मिक्षाभाजमम् // 18 // ) अयं दोषी अर्थात् अधिक व्यय करने वाला कुबेर भी भीख मांगता है।