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________________ नीतिवाक्यामृतम् .. व्यक्तित्व और वाणी का सम्बन्ध(वक्तगणगौरवाद वचनगौरवम् // 17 // ) बोलनेवाले के गुणों को गुरुता के कारण उसकी वाणी का गौरव होता है। धन के उपयोग के विषय में(किं मितम्पचेषु धनेन चण्डालसरसि वा जलेन यत्र सतां नोपभोगः // 18 // अपने ही भोजन भर को थोड़ा सा पकाने वाले अर्थात् कृपण पुरुष को धन होने से और चण्डाल के तालाब में जल होने से क्या लाभ है जबकि सामान्यरूप से सत् पुरुष उसका उपभोग नहीं कर सकते। ___ जनता की गतानुगतिलोकस्तु गतानुगतिको यतोऽसौ सदुपदेशिनीमपि कुट्टिनी धर्मेषु न तथा प्रमाणेयति यथा गोप्नमपि ब्राह्मणम् // 16 // संसार गतानुगतिक अर्थात् 'देखा-देखी' काम करने वाला है, जैसा एक करता है वैसा ही दूसरे भी करने लगते हैं। क्योंकि कुट्टिनी-वेश्या धर्म के सम्बन्ध में कैसा भी सदुपदेश क्यों न दे लोग उसे वैसा न मानेगें जैसा गो के भी हत्यारे ब्राह्मण के उपदेश को। [इति विचारसमुद्देशः] 16. व्यसन समुद्देश व्यसन और उसका भेद(व्यस्यति पुरुषं श्रेयसः इति व्यसनम् // 1 // ) व्यक्ति को कल्याण मार्ग से विचलित अथवा भ्रष्ट करनेवाले कार्यों का नाम व्यसन है। (व्यसनं द्विविधं सहजमाहार्य च // 2 // ) व्यसन दो प्रकार के हैं : 1. सहज 2. आहार्य अर्थात् एक स्वाभाविक, दूसरा दूसरों को छूत, मद्यपान आदि में प्रवृत्त देखकर स्वयं भी उसमें पड़ना / __सहज व्यसन को दूर करने के उपाय(सहज व्यसनं धर्मसंभूताभ्युदयहेतुभिरधूर्मजनितमहाप्रत्यवायप्रतिपादनैरुपाख्यानैर्योगपुरुषैश्च प्रशमं नयेत् // 3) __मनुष्य को चाहिए कि वह अपने सहज व्यसनों को धर्ममूलक कल्याणकारी साधनों और उपार्यों से और अधर्म से होने वाले महान् सङ्कटों को '
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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