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________________ नीतिवाक्यामृतम 15. विचारसमुद्देशः यहाँ 1 से 10 सूत्रों तक विचार की महत्ता और उसके स्वरूप का चिंतन किया गया है नाविचार्य कार्य किमपि कुर्यात् // 1 // ) बिना विचार के कोई भी कार्य न करे / प्रत्यक्षानुमानागमैर्यथावस्थितवस्तुव्यवस्थापनहेतुर्विचारः // 2 // प्रत्यक्षा, अनुमान और आगम प्रमाण के द्वारा जो वस्तु जैसी है उसे उसी रूप में निश्चित करने के कारण का नाम विचार है। (स्वयं दृष्टं प्रत्यक्षम् // 3 // अपनी आँखो देखा दृश्य प्रत्यक्ष कहा जाता है / (न ज्ञानमात्रात् प्रेक्षावतां प्रवृत्तिनिवृत्तिर्वा // 4 // ). किसी भी कार्य में विचारकों की प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति- कवल ज्ञान से नहीं होती अर्थात् चिन्तनशील पुरुष किसी काम को तभी छोड़ते हैं या उसमें लगते हैं जब वे उसे प्रत्यक्ष अनुमान आदि से ठीक समझते हैं / (स्वयं दृष्टेऽपि मतिविमुह्यति, संशेते विपर्यस्यति वा किं पुनर्न परोपदिष्टे // 5 // जब कि स्वयं देखे हुए भी पदार्थ में मनुष्य की बुद्धि मोह, संशय और भ्रमे में पड़ जाती है तब क्या दूसरों के द्वारा बताई या कही गई वस्तु में उसे मोहादि नहीं होगा! (स खलु विचारज्ञो यः प्रत्यक्षेणोपलब्धमपि साधु परीक्ष्यानुतिष्ठति // 6 // विचारक वह है जो प्रत्यक्ष देखी वस्तु का भी सम्यक् परीक्षण करने के अनन्तर कार्य में प्रवृत्त होता है। (अतिरमसात् कृतानि कार्याणि किं नामानर्थ न जनयन्ति // 7 // ) अत्यन्त शीघ्रता से किये गये कार्य कौन सा अनर्थ नहीं उत्पन्न करते ? अर्थात् बिना सोचे समझे किसी कार्य को जल्दबाजी में कर डालने से अनेक फैठिनाइयां और उपद्रव सामने आते हैं। अविचार्याचरिते कर्मणि पश्चात् प्रतिविधानं गतोदके सेतुबन्धनभिव॥८॥) पिना विचार किये गये काम में आई हुई आपत्तियों का बाद में प्रती. कार करना पानी बह जाने पर बांध बांधने के समान व्यर्थ है / (कर्मसु कृतेनाकृतावेक्षणमनुमानम् // 6 // ) किये गये काम से बिना किये हुए काम को बुद्धि से समझ लेना अर्थात्
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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