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________________ चारसमुद्देशः करने वाला वैतालिकं चारण भाट, बन्दी आदि और सूत-कथा वाचक ये 'वाग्जीवी' हैं। (गणकः संख्याविद् दैवज्ञो वा // 27 // गणित का पण्डित अथवा ज्योतिषो 'गणक' है) शाकुनिकः शकुनवक्ता // 28 // तरह-तरह के भले-बुरे सगुन बताने वालों का नाम शाकुनिक है) (भिषगायुर्वेदविवैद्यः शस्त्रकर्मविञ्च / / 26 // बायुर्वेद जानने वाला वैद्य और शस्त्र कर्म अर्थात् चीड-फाड़ जानने वाला भिषक है) (ऐन्द्रजालिकस्तन्त्रयुक्त्या मनोविस्मयकरो मायावी वा // 30 // तन्त्रशास्त्रों की युक्तियों द्वारा मन को चकित कर देने वाला मायावी 'ऐन्द्रजालिक' कहा जाता है। नैमित्तिको लक्ष्यवेधदैवज्ञो वा // 31 // लक्ष्यवेध करने वाला अथवा, दैवज्ञ 'नैमित्तिक' है। ( महानसिकः सूदः // 32 // रसोई बनाने वाला 'सूद' है / (विचित्रभक्ष्यप्रणेता आरालिकः / / 33 / / विभिन्न प्रकार के भोजन बनाने वाले को आरालिक कहते हैं। अङ्गमर्दनकलाकुशलो भारवाहको वा संवाहकः // 34 // अङ्गमर्दन की कला में कुशल अथवा बोझा ढोने वाले कुली की 'संवाहक' बंशा है। द्रव्यहेतोः कृच्छण कर्मणा यः स्वजीवितविक्रयी स तीक्ष्णोऽसहयो वा // 35 // पैसे के लिये अत्यन्त कठोर कर्म शेर बाघ आदि से लड़ना आदि के द्वारा जो अपने प्राणों तक की बाजी लगा दे उसको 'तीक्ष्ण' अथवा 'असह्य' कहते हैं ). बन्धुषु निःस्नेहाः ऋराः / / 36 // बन्धु-बान्धवों के प्रति स्नेह रहित व्यक्ति को 'कर' कहते हैं। अलसाश्च रसदाः // 37 // - आलसी आदमियों की 'रसद' संज्ञा है। [इति चारसमुद्देशः]
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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