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________________ नीतिवाक्यामृतम् प्रविष्टगूढपुरुषपरिज्ञानम् अन्तर्भूमिपालाटविकसम्बन्धः कोशदेशतन्त्र मित्रावबोधः कन्यारत्नवाहनविनिश्रावणं स्वामीष्टपुरुषप्रयोगात् परप्रकृतिक्षोभकरणं च दूतकर्म // 8 // (शत्रु द्वारा प्रयुक्त कृत्या की शान्ति करना, शत्रु के लिये कृत्या का उत्थापन करना, कारागार आदि में अवरुद्ध शत्रु के पुत्र और पट्टीदार आदि को फोड़ना, द्रव्यादि देकर अपनी ओर मिलाना-अपनी टोली में प्रविष्ट शत्र के गुप्त-पुरुष का पता लगाना, अन्त.पुर और अरण्य के रक्षकों से सम्बन्ध स्थापित करना, शत्रु के कोष का, देश की भीतरी बातों का, शासन का और उसके मित्रों का पता लगाना, कन्या, रत्न और वाहन का निकलवा ले जाना, अपने अनुकूल पुरुषों के प्रयोग से शत्रु की प्रजा में क्षोभ उत्पश्च करना ये दूत के काम है।) (मन्त्रिपुरोहितसेनापतिप्रतिबद्धाप्तजनोपचारविसम्माभ्यां शत्रोरिति कर्तव्यतामन्तः सारतां च विन्द्यात् // 6 // - शत्रु के मन्त्री पुरोहित सेनापति और दृढ़ विश्वास पात्र व्यक्तियों की सेवा और विश्वास से शत्रु के लक्ष्य और उद्देश्य तथा उसकी भीतरी शक्ति का पता लगावे। (स्वयमशक्तः परेणोक्तमनिष्टं सहेत् // 10 // ) स्वयम् असमर्थ बनकर शत्रु के द्वारा कथित अप्रिय बातों को सहन करे। (गुरुषु स्वामिषु वा परिवादे नास्ति क्षान्तिः // 11 // ) गुरु अथवा स्वामी की निन्दा सुनने पर क्षमा भाव से काम न लेकर उसका प्रतिवाद करे। शत्रु पर आक्रमण करने की नीतिस्थित्वापि यास्यतोऽवस्थापनं केवलमपक्षयहेतुः // 12 // प्रथम तो बैठा हो पुनः जाने की अर्थात् आक्रमण की इच्छा करे और फिर स्थिर हो जाय तो इससे केवल अपनी ही हानि होती है / शत्रु को यह समझने का अवसर मिलता है कि इसमें शक्ति नहीं है इस लिये रुक गया है / ___ शत्रु के दूत से मिलने का ढंग - वीरपुरुषपरिवारितः शूरपुरुषान्तरितान् परदूतान् पश्येत् // 13 // स्वयं वीर पुरुषों से संयुक्त होकर शूर पुरुषों के बीच छिपे हुए शत्र के 'दूतों को देखे अर्थात् इनसे भेंटकरे / दृष्टान्त (अयते हि किल चाणक्यस्तीक्ष्णदूतप्रयोगेणैकं नन्दं जघानेति // 14 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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