________________ दूतसमुद्देशः . 13. दूत समुद्देशः दूत और उसके गुणअनासन्नेष्वर्थेषु दूतो मन्त्री // 1 // दूर के कामों के लिये भेजा जाने वाला दूत है और वह मन्त्री के __ स्वामिभक्तिरव्यसनिता, दाक्ष्यं शुचित्वममूर्खता प्रागल्भ्यं प्रतिभावत्त्वं शान्तिः परमर्मवेदित्वं जातिश्च प्रथमे दूत गुणाः / / 2 - __ स्वामि-भक्ति, जुआ शराब आदि का व्यसन न होना, चातुर्य, पवित्रता, मूखंता का अभाव, प्रगल्भता, प्रतिभावान् होना, सहिष्णुता, दूसरे के मर्म को पानमा, और उत्तम जाति का होना ये दूत के मुख्य गुण हैं। स च त्रिविधो निःसृष्टार्थः परिमितार्थः शासनहरवेति // 3 // पूत भेद- . व तीन प्रकार के है निःसृष्टार्थ, परिमितार्थ, और शासनहर। यत्कृतौ स्वामिनः सन्धिविग्रहौ प्रमाणं स निःसृष्टार्थो यथा कृष्णः पाण्डवानाम् // 4 // जिस दूत के किये हुए सन्धि और विग्रह को स्वामी प्रामाणिक स्वीकार कर लेता है वह 'निःसृष्टार्थ' दूत है, जैसे कृष्ण पाण्डवों के निःसृष्टार्थ दूत थे। (जिससे कुछ सीमित कार्य ही कराया जाय वह परिमिता और जो केवल चिट्ठी पत्री आदि ले जाय वह शासनहर है )D - दूत के कर्तव्यअविज्ञातो दूतः परस्थानं न प्रविशन्निर्गच्छेद् वा // 5 // दूत शत्रु राजा को अपना परिचय दिये बिना न तो उसके राज्य में प्रविष्ट हो, न वहां से बाहर आवे / (मत्स्वामिनमतिसंघातुकामः परो मां विलम्बयितुमिच्छतीत्यविज्ञातो. ऽपि दूतोऽपसरेद् गूढपुरुषान् वावसर्पयेत् // 6 // मेरे स्वामी को धोखे में डाल रखने की इच्छा से शत्रु मुझे अपने यहां रोक रखना चाहता है यह ज्ञात होने पर दूत शत्रु राजा को बिना बताये हुए भी वहां से भाग आवे अथवा गुप्त दूत को वहां से अपने राजा के पास भेजे। . परेणाशुसंप्रेषितो दूतः कारणं विमृशेत् // 7 // शत्रु के द्वारा शीघ्र ही वापस कर दिया गया दूत उस शीघ्रता का कारण सोचे। (कृत्योपग्रहः कृत्योत्थापनं सुतदायादावरुद्धोपजापः स्वमण्डल.