________________ नीतिवाक्यामृतम् / / हठी को हित उपदेश देना बहिरे के आगे गाने के समान निष्फल है। (अकार्यज्ञस्य शिक्षणमन्धस्य पुरतो नर्तनमिव // 41 // ) ॐ कर्तव्य ज्ञान से शून्य पुरुष को शिक्षा देना अन्धे के आगे नोचने के समान व्यर्थ है। (अविचारकस्य युक्तिकथनं तुषकण्डनमिव // 42 // विचारशून्य व्यक्ति से युक्तियुक्त बात कहना भूसे को कूटने के समान निरर्थक है।) नीचेषूपकृतमुदके विशीर्ण लवणमिव // 43 // ) .. नीच व्यक्तियों के साथ उपकार करना पानी में बिखेरे गये नमक के समान है। (अविशेषज्ञे प्रयासः शुष्कनदीतरणमिव / / 44 // ) '- विशेष बुद्धि न रखने वाले अर्थात् मूर्ख को समझाने का प्रयास सूखी नदी में तैरने के समान है। (परोक्षे किलोपकृतं सुप्तसंवाहनमिव // 45 // . परोक्ष में किया गया उपकार सोये हुए व्यक्ति के पैर दबाने के समान है। ( अकाले विज्ञप्तभूषरे कृष्टमित्र // 46 // अनवसर में कही गई बात ऊसर जमीन जोतने के समान है।) उपकृत्योद्घाटनं वैरकरणमित्र // 47 // उपकार करके उसे प्रकाशित करना शत्रुता करने के समान है। (अफलवतः प्रसादः काशकुसुमस्येव // 48 / / परिणाम में कुछ न कर सकने वाले व्यक्ति का प्रसन्न होना काश के फूल के समान है / 'काश' में केवल फूल होते हैं फल नहीं लगते उसी प्रकार जो व्यक्ति अथवा नृपति न कुछ भलाई कर सके न कुछ द्रव्य आदि दे सके उसे प्रसन करना या उसकी कृपा व्यर्थ है / (गुणदोषावनिश्चित्यानुग्रहनिग्रहविधानं ग्रहाभिनिवेश इव // 46 ) गुण और दोष का निश्चय किये बिना अनुग्रह अथवा निग्रह-दण्ड देनाराहु, केतु मादि ग्रहों के अभिनिवेश के समान है अर्थात् अपना ही बाधक होता है। (उपकारापकारासमर्थस्य तोषरोषकरणमात्मविडम्बनमिव // 50 // उपकार अथवा अपकार करने में असमर्थ व्यक्ति को संतुष्ट करना अपना ही परिहास कराना है। शूदस्त्रीविद्रावणकारी गलगजितं ग्रामशूराणाम् / / 51 //