________________ नीतिवाक्यामृतम् / सहाध्यायी के प्रति कर्तव्य(सहाध्यायिषु बुद्धचतिशयेन नाभिभूयेत // 16 // अपनी बुद्धि यदि अन्य छात्रों की अपेक्षा अधिक तीक्ष्ण हो तो उससे सहपाठियों का पराभव तिरस्कार न करे / गुरु के साथ व्यवहार(प्रज्ञयातिशयानो न गुरुमवज्ञायेत // 20 // ) अपनी बुद्धि यदि गुरु से अधिक श्रेष्ठ हो तो उससे गुरु का अनादर न करे। (सकिमभिजातो मातरि यः पुरुषः शूरो वा पितरि // 21 // क्या वह पुत्र कुलीन कहा जा सकता है जो कि माता अथवा पिता के प्रति शूरता प्रदर्शित करता है। __ अननुज्ञातो न कचिद् व्रजेत् / / 22 // गुरु से बिना आज्ञा लिये हुए कहीं न जाय / मार्गमचलं जलाशयं च नैकोऽवगाहयेत् // 23 // लम्बे मार्ग पर, पहाड़ पर और जलाशय पर अकेले नहीं जाना चाहिए। पितरमिव गुरुमुपचरेत् / / 24 // पिता के समान ही गुरु की सेवा करे / ... गुरुपत्नी जननीमिव पश्येत् / / 25 // गुरुपत्नी को माता के समान देखे। . गुरुमिव गुरुपुत्रं पश्येत् / / 26 // .. गुरु के समान ही गुरु पुत्र को भी समझे। सब्रह्मचारिणि बान्धव इव स्निह्येत् // 27 // साथी ब्रह्मचारियों और सहपाठियों के साथ बान्धवों के समान स्नेह करे। ब्रह्मचर्यमाषोडशावर्षात्ततो गोदानपूर्वकं दारकर्म चास्य // 28 // सोलह वर्ष तक ब्रह्मचर्य से रहे अनन्तर गोदान करके विवाह करे। पढ़ने का क्रम(समविद्यैः सहाधीतं सर्वदाभ्यस्येत // 26 // पढ़े हुए विषय का अपने सहपाठियों के साथ सदा अभ्यास करे। अपनी दुर्दशा का गुप्त रखना - (गृहदौःस्थित्यभागन्तुकानां पुरतो न प्रकाशयेत् // 30 // ) अपने घर की दुरवस्था आगन्तुकों के आगे न प्रकाशित करे /