________________ पुरोहितसमुद्देशः उसका अभ्यास किया जाता है तो उस कर्म में कुशलता अवश्य प्राप्त होती है। गुरु की आज्ञा का पालनगुरुवचनमनुल्लङ्घनीयमन्यत्राधर्मानुचिताचारात्मप्रत्यवायेभ्यः // 6 // जो धर्मानुकूल हों, उचित आचरण के प्रतिकूल न हों तथा जिनसे बात्मकल्याण होता हो ऐसे गुरुवचनों का उल्लङ्घन नहीं करना चाहिए / गुरु की विशेषतायुक्तमयुक्तं वा गुरुरेव जानाति यदि न शिष्यः प्रत्यर्थवादी // 10 // यदि शिष्य गुरु के प्रतिकूल बोलने वाला नहीं है तो उसके लिये उचित और अनुचित कर्तव्यों को गुरु ही जानता है। ___ क्रोधित गुरुजनों के प्रति कर्तव्य(गुरुजनरोषेऽनुत्तरदानमभ्युपपत्तिश्चौषधम् / / 11 // ) गुरु लोग जब कुपित हों तब उत्तर न देना और सेवा करना ही उस क्रोध की शान्ति के लिये औषध है। ____ गुरु के प्रति कर्तव्यों का निर्देश(शत्रूणामभिमुखः पुरुषः श्लाघ्योन पुनर्गुरूणाम् // 12 // पुरुष वह प्रशंसनीय है जो शत्रुओं से मोर्चा ले न कि गुरुओं से / (आराध्यं न प्रकोपयेद् यद्यसावाश्रितेषु कल्याणशंसी // 13 // यदि आराध्य गुरु अपने आश्रितों के सदा कल्याणकामी हों तो उनको कुपित नहीं करना चाहिए। गुरुभिरुक्तं नातिक्रमितव्यं यदि नंहिकामुत्रिकफलविलोपः // 14 / / / यदि इहलोक और परलोक की फलप्राप्ति में बाधा न पड़ती हो तो गुरुओं के वचन का उल्लङ्घन नहीं करना चाहिए / सन्दिहानो गुरुम् अकोपयन्नापृच्छेत् // 15 // पढ़ते समय किसी बात में संशय होने पर गुरुजी क्रोधित न हों इस बात का ध्यान रखते हुए सन्दिग्ध विषय को पुनः पूछ ले / गरूणां पुरतो न यथेष्टमासितव्यम् // 16 // गुरुओं के आगे मनमाने ढंग से न बैठे। __नानभिवाद्योपाध्यायाद् विद्यामाददीत / / 17 / / अभिवादन किये बिना गुरु से विद्या न ग्रहण करे / अध्ययनावस्था का आचारअध्ययनकाले व्यासङ्गं पारिप्लवमन्यमनस्कतां च न व्रजेत् // 18 // अध्ययन के समय विरोधी विचार, चञ्चलता और अन्यमनस्कता न करे। ५नी०