________________ नीतिवाक्यामृतम् आपत्तियां निम्न प्रकार की हैं-बिजली गिरने से अथवा उल्कापात से अग्नि लग जाना, वर्षा का न होना, अतिवृष्टि का होना, महामारी, हैजा, प्लेग आदि का फैलना, अकाल पड़ना, पौधों में कीड़ों का लगना, टिड्डी दल आदि का आना, रोग, भूत-पिशाच, डाकिनी शाकिनी अर्थात् चुडैल आदि सर्प और अन्य हिंसक जन्तु तथा चूहों आदि का उपद्रव / राजकुमारों की शिक्षा के विषय( शिक्षालापक्रियाक्षमो राजपुत्रः सर्वासु लिपिषु, प्रसंख्याने पद-प्रमाणप्रयोगकर्मणि नीत्यागमेषु, रत्नपरीक्षायां सम्भोगप्रहरणोपवाह्यविद्यासु च साधु विनेतव्यः // 4 // राजा को चाहिए कि जब राजकुमार शिक्षा ग्रहण करने योग्य, बातचीत के योग्य और काम-काज करने योग्य हो जाय तंब उसे सब प्रकार की लिपियों में, गणित में, व्याकरण और न्याय शास्त्र के व्यावहारिक प्रयोग में नीतिशास्त्रों में, रत्न परीक्षा में, काम शास्त्र, संग्राम विद्या और तरह तरह की सवारियों की विद्या में भली प्रकार सुशिक्षित बनावे। गुरुसेवा(अस्वातन्त्र्यमुक्तकारित्वं, नियमो विनीतता च गुरूपासनकार• णानि // 5 // स्वच्छन्द न होना, गुरु को आज्ञाओं का पालन करना, नियमपूर्वक रहना और विनीत होना, ये सब गुण गुरु की उपासना के कारण हैं। _ विनय का स्वरूप व्रतविद्यावयोऽधिकेषु नीचैराचरणं विनयः // 6 // किसी व्रत विशेष के पालन से, ज्ञान से और अवस्था से जो अपने से उत्कृष्ट हों उनके आगे अत्यन्त विनम्र व्यवहार करना विनय है। विनय का कल(पुण्यावाप्तिः, शास्त्ररहस्यपरिज्ञानं, सत्पुरुषाधिगम्यत्वं च विनयफलम।।७॥) पुण्य की प्राप्ति, शास्त्र के गूढ रहस्य का ज्ञान और सापुरुषों के साथ समागम यह सब विनय के फल हैं। विनय से ये चीजें अनायास प्राप्त होती हैं। परम्परागत ज्ञान की आवश्यकता( अभ्यासः कर्मसु कौशलमुत्पादयत्येव यद्यस्ति तज्ज्ञेभ्यः सम्प्रदायः // 8 // कोई भी काम यदि उसके जानने वालों से परम्परागत प्राप्त होता है और