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________________ 53 मन्त्रिसमुहेशः दृष्टान्तऋद्धो हि सर्प इव यमेवाग्रे पश्यति तत्रैव दोषविषमुत्सृजति // 171 // क्रोधी व्यक्ति सपं के समान होता है वह जिसे ही आगे पाता है उसी पर अपना क्रोधरूपी विष उगलता है / कार्य के समय योग्य व्यक्ति का ही आगमन श्रेयस्कर है-- अप्रतिविधातुरागमनाद् वरमनागमनम् // 172 // जो किसी बात का प्रतीकार न कर सके अर्थात् आई हुई आपत्ति आदि को दूर न कर सके ऐसे आदमी का न आना ही आने से अच्छा है। क्योंकि "ऐसा आदमी कुछ काम तो आवेगा नहीं और व्यर्थ समय नष्ट करेगा। [इति मन्त्रिसमुद्देशः] 11. पुरोहितसमुद्देशः राजपुरोहित के गुण-- (पुरोहितमुदितोदितकुलशीलं षडंगवेदे, दैवे, निमित्ते, दण्डनीत्यां च प्रवीणमथर्वज्ञमतिविनीतमभिनीतम् , आपदा दैवीनां मानुषीणाञ्च प्रतिक रिं कुर्वीत // 1 // __राजा अपना पुरोहित ऐसा चुने जिसमें निम्न गुण हों। प्रख्यातवंश और शील-स्वभाव वाला, शिक्षा, व्याकरण आदि षडङ्ग युक्त वेद में निष्णात, देवी तथा ग्रहादि के कारण उत्पन्न होनेवाले उत्पात दूर करने में निपुण शासन में प्रवीण अथवं वेद में उक्त अभिचार और शान्तिकर्म का ज्ञाता, अत्यन्त विनययुक्त और सुसंस्कृत अथवा मैत्रीपूर्ण, देवी और मानुषी आपत्तियों को दूर करने वाला।) ... राजा के लिये मन्त्री और पुरोहित की महत्ता-- (राज्ञो हि मन्त्रिपुरोहितौ मातापितरौ, अतस्तौ न केषुचिद् वाञ्छितेषु विसूरयेत् , दुःखयेदुर्विनयेद् वा // 2 // राजा के लिये मन्त्री और पुरोहित माता और पिता के समान हैं अतः उनको किसी भी अभिलषित वस्तु के लिये दुःखित अथवा तिरस्कृत न करे / __ आपत्तियों की गणना-- (अमानुषोऽग्निः, अवर्षम् , अतिवर्षम् , मारको, दुभिक्षम् सस्योप"पघातः, जन्तूत्सर्गो, व्याधि-भूत-पिशाच-शाकिनी-सर्प-व्याल-मूषक क्षोभ. श्वेत्यापदः // 3 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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