SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन्त्रिसमुद्देशः ___ महापुरुष का स्वभावनाविज्ञाय परेषामर्थमनर्थं वा स्वहृदयं प्रकाशयन्ति महानुभावाः // / दूसरों का सदाशय और दुराशय जाने विना महापुरुष अपने मन की बात नहीं प्रकट करते / महान् व्यक्ति से सम्भाषण का लाभ(क्षीरवृक्षवत् फलसम्पादनमेव महतामालापः // 130 / / ) महापुरुषों का सम्भाषण दूधवाले वृक्ष की तरह फल सम्पादन करता है। (विशेषार्थ-जिस प्रकार पत्ता या छाल निकालने पर जिनमें दूध निकल आता है ऐसे वृक्ष मीठा फल देते है उसी प्रकार महापुरुषों की बातचीत से भी अच्छा परिणाम निकलता है। नीच को वश में लाने का उपाय(दुरारोहपादप इव दण्डाभियोगेन फलप्रदो भवति नीचप्रकृतिः // कोटे या ऊंचाई के कारण न चढ़े जा सकने योग्य वृक्षों का फल जैसे दण्ड से पीटने पर ही गिरता है उसी प्रकार नीच प्रकृति के पुरुष भी दण्डदान से ही फलीभूत या वशीभूत होते हैं। महान् पुरुष का लक्षण(स महान् यो विपत्सु धैर्यमवलम्बते // 132 // ) महान वही है जो विपत्ति में धैर्य धारण करे। आकुलता दोष है-- (उत्तापकत्वं हि सर्वकार्येषु सिद्धीनां प्रथमोऽन्तरायः / / 133 // ___ आकुल हो उठना समस्त कार्यों की सिद्धि के निमित्त प्राथमिक या प्रार‘म्भिक विध्न है।) - कुलीन का लक्षण-- शरद्घना इव न खलु वृथालापं गलगर्जितं वा कुर्वन्ति सत्कुलजाताः // 124 // - उत्तम कुल में उत्पन्न व्यक्ति शरत्कालीन मेघ की गर्जना के समान व्यर्थ आलाप नहीं करते। सुन्दर-असुन्दर का भेद-- - न स्वभावेन किमपि वस्तु सुन्दरमसुन्दरं वा, किन्तु यदेव यस्य प्रकृतितो भाति तदेव तस्य सुन्दरम् / / 135 / / ___स्वभाव से ही कोई वस्तु सुन्दर या असुन्दर नहीं होती फिन्तु जिसकी प्रकृति से जिसका मेल बैठता है अथवा जिस किसी को स्वभाव से ही जो वस्तु अच्छी लगती है वही उसके लिये सुन्दर होती है।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy