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________________ नीतिवाक्यामृतम जो महामूर्ख होते हैं वे ही बहुत क्लेश साध्य किन्तु स्वल्प फल वाले कार्य आरम्भ करते है। . कापुरुष का लक्षण. (दोषभयान कार्यारम्भः कापुरुषाणाम् / / 121 / / ) दोष के भय से कार्य न करना कापुरुष का लक्षण है। .. . दृष्टान्त(मृगाः सन्तीति किं कृषिन क्रियते // 122 / / अजीर्णभयात् किं भोजनं परित्यज्यते // 123 / ) मृग हैं इसलिए क्या कोई खेती नहीं करता। और अजीणं के भय से क्या कोई भोजन छोड़ देता है ? विघ्नों की अनिवार्यतास खलु कोऽपीहाभूदस्ति भविष्यति वा यस्य कार्यारम्भेपु प्रत्यवाया न भवन्ति / / 124 // : इस संसार में क्या कोई ऐसा भी है या होगा जिसके कार्य में विघ्न न होते हों। दुष्टात्मा की कार्य पद्धति-- आत्मसंशयेन कार्यारम्भो व्यालहृदयानाम् // 125 // ) अपने प्राणों को संशय में डालकर कार्य प्रारम्भ करना दुष्टात्माओं का कार्य है। महापुरुष की पहिचान(दूरभीरुत्वमासन्नशूरत्वं (रिपुं प्रति ) महापुरुषाणाम् // 126 // ) महापुरुष लोग शत्रु जब तक दूर रहता है तब तक तो उससे डरते हैं किन्तु जब वह आक्रमण कर समीप आ जाता है तब अपनी शूरता का प्रदर्शन करते हैं। मृदुता के गुण- जलवन्मार्दवोपेतः पृथूनपि भूभृतो भिनत्ति // 127 / / जिस प्रकार कोमल जल प्रवाह बड़े-बड़े पर्वतों को भी फोड़ कर गिरा देता है उसी प्रकार मृदुतायुक्त राजा भो बड़े बड़े राजाओं का विनाश कर देता है। प्रियवादिता के लाभ(प्रियम्बदः शिखीव सदानपि द्विषत्सोनुत्सादयति // 128 // . प्रिय बाणी वाला मयूर जिस प्रकार दर्प युक्त सॉं को नष्ट कर देता है उसी प्रकार प्रियवक्ता राजा भी सदर्प शत्रुओं का विनाश कर देता है।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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