________________ मन्त्रिसमुद्देशः . क्षति प्राप्त पुरुष की प्रतिक्रिया- . सूचीमुखसर्पवन्नानपकृत्य विरमन्त्यपराद्धाः // 1 // जिन के प्रति कोई अपकार या अपराध किया गया हो ऐसे व्यक्ति 'सूची मुख' जाति के सर्प के समान बिना हानि पहुँचाए विश्राम नहीं लेते। अतिकामी के दोष(अतिवृद्धः कामस्तन्नास्ति यन्न करोति / / 114 / / ) अत्यधिक कामी पुरुष ऐसा कोई अकार्य नहीं है जो वह न करे / दृष्टान्तश्रयते किल हि कामपरवशः प्रजापतिरात्मदुहितरि, हरिगोपवधूषु, हरः शान्तनुकलत्रेषु, सुरपतिर्गौतमभार्यायां चन्द्रश्च बृहस्पतिपन्यां मनश्चकारेति / / 115 // पुराणादि की कथा में सुना जाता है कि कामातुर ब्रह्मा अपनी कन्या पर, कृष्ण गोपों की स्त्रियों परे, महादेव शान्तनु की स्त्री गङ्गा पर इन्द्र गौतम ऋषि की पत्नी अहल्यापर और चन्द्रमा बृहस्पति की पत्नी तारा पर कामासक्त हुए। धन की स्पृहा स्वाभाविक हैअर्थेषूपभोगरहितास्तरवोऽपि साभिलाषाः किंपुनर्मनुष्याः // 116 // फल पुष्पादि का स्वयम् उपभोग न करने वाले वृक्ष भी जब फल पुष्परूप अर्थ के इच्छुक होते हैं तो फिर मनुष्यों का क्या कहना है / वह तो अर्थ का स्वयम् उपभोग करता है उसे तो धन की स्पृहा होगी ही। धन प्राप्ति से लोभ वृद्धि-. कस्य न घनलाभाल्लोभः प्रवतते // 117 / / घन का लाभ होने लगने पर किसे लोभ नहीं होता ? . प्रत्यक्ष देवता का स्वरूप(स खलु प्रत्यक्षं दैवं यस्य परस्वेष्विवपरस्त्रीषु निःस्पृहं चेतः / / 11 / / ) निश्चय की वह प्रत्यक्ष देवता है जिसकी पराये धन के समान ही परस्त्री में स्पृहा नहीं होती। माय-व्यय में विवेक की आवश्यकतासमायव्ययः कार्यारम्भो राभसिकानाम् // 11 // बिना विवेक के तुरन्त कार्य अथवा व्यापार अर्थात् जल्दबाजी में काम करने वाले को काम का लाभ नहीं होता / लाभ हानि बराबर हो जाता है / महामूर्खता के लक्षण- . (बहुक्लेशेनाल्पफलः कार्यारम्भो महामूर्खाणाम् / / 120