________________ मन्त्रिसमुद्देशः कृत्या-अपने शत्रु का विनाश करने के लिये यज्ञानुष्ठान के द्वारा शक्ति विशेष या पुरुष विशेष को प्राप्त करना 'कृत्या' उत्पन्न करना कहा जाता है। ___ अविवेकी का शास्त्रज्ञान व्यर्थ है(अकार्यवेदिनः किं बहुना शास्त्रेण // 8 // ) कर्तव्य कर्म को न जानने वाले का अनेक शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ है। गुणहीन व्यक्ति की निन्दा(गुणहीनं धनुः पिंजनादपि कष्टम् // 16 // प्रत्यञ्चाहीन धनुष पिजन अर्थात् रुई धुनने की 'धुनकी' से भी अधिक कष्टदायक होता है / धुनकी से तो कम से कम रुई तो साफ हो जाती है / पर विना डोर का धनुष क्या काम देगा?) __ मन्त्री के गौरव का कारण(चक्षुष इव मन्त्रिणोऽपि यथार्थदर्शनमेवात्मगौरवहेतुः / / 100 / ) जिस प्रकार आंत की प्रशंसा उसकी सूक्ष्मदर्शी ज्योति के कारण होती है उसी प्रकार मन्त्री का राजनीति का यथार्थ ज्ञान ही उसको गौरव प्रदान करता है। शस्त्र और मन्त्र का अधिकार भिन्न-भिन्न है(शस्त्राधिकारिणो न मन्त्राधिकारिणः स्युः // 101 // ) शस्त्र के अधिकारी अर्थात् क्षत्रिय अथवा शस्त्रोपजीवियों को मन्त्रणा देने का अधिकार नहीं देना चाहिए। क्षत्रिय का स्वभाव(क्षत्रियस्य परिहरतोऽप्यायात्युपरि भण्डनम् // 102 // क्षत्रिय बचाते बचाते हुए भी लड़ बैठता है। (शखोपजीविनां कलहमन्तरेण भक्तमपि भुक्तं न जीर्यति // 103 / / ) शस्त्रोपजीवी अर्थात् क्षत्रियों को लड़ाई किये बिना खाया हुआ भात अर्यात सूक्ष्म भोजन भी नहीं पचता / / मनुष्य के गर्व के हेतु.. मन्त्राधिकारः, स्वामिप्रसादः शस्रोपजीवनं चेत्येकैकमपि पुरुषमुत्सेकयति किं पुनर्न समुदायः / / 104 // जब कि मन्त्रिपद, राजा की कृपा और शस्त्र से आजीविका इन तीनों में से एक एक वस्तु भी पुरुष को मदमत्त करने में समर्थ होती है तो क्या इन तीनों का एकत्र होना उसे मदमत्त नहीं करेगा ? अधिकारी होने के अयोग्य व्यक्ति(न लम्पटोऽधिकारी // 105 / / )