________________ नीतिवाक्यामृतम् दृष्टान्त द्वारा समर्थन किं नामान्धः पश्येत् // 10 // अन्धा क्या देखेगा?। द्वितीय दृष्टान्त(किमन्धेनाकृष्यमाणोऽन्धः समं पन्थानं प्रतिपद्यते // 61 // ) क्या अन्धे के सहारे चलता हुआ अन्धा सम-मार्ग को पा सकता है ? ___ समर्थन(तदन्धवर्तकीयं काकतालीयं वा यन्मूर्खमन्त्रात् कार्यसिद्धिः // 12 // ) मुखं पुरुष की मन्त्रणा से कभी-कभी कार्य का सिद्ध हो जाना संयोग वेश. अन्धे के हाथ बटेर आ जाने के तथा स्वयं गिरते हुए ताड़ के फल पर अकस्मात् कोवे के बैठ जाने के समान है। समर्थन--. (स घुणाक्षरन्यायो यन्भूखेषु मन्त्रपरिज्ञानम् // 13 // ) मूर्ख को मन्त्रणा का ज्ञान धुणाक्षरन्याय के समान है / लकड़ी का कीड़ा 'घुम' स्वेच्छा से लकड़ी खाता है उसमें कभी संयोग-वश किसी अक्षर की आकृति बन जाना जैसे सार्वकालिक या घुन की स्वाभाविक कला नहीं होती उसी प्रकार संयोग वश कभी ही मूर्ख अच्छी सलाह दे सकता है। __ मन्त्रणा के लिये शास्त्र ज्ञान की आवश्यकता(अनालोकं लोचनमिवाशाखं मनः कियत् पश्येत् // 14 // ) बिना ज्योति के नेत्र के समान शास्त्र ज्ञान से शून्य मन कितना विचार कर सकता है। सेवक के लिये स्वामी की प्रसन्नता ही मुख्य है__ स्वामिप्रसादः सम्पदं जनयति न पुनराभिजात्यं पाण्डित्यं वा // 65 // स्वामी की कृपा से सम्पत्ति प्राप्त होती है कुलीनता और पाण्डित्य से नहीं। यथार्थ का गौरव अक्षुण्ण रहता हैहरकण्ठलग्नोऽपि कालकूटः काल एव / / 66 // शङ्कर जी के गले में भी लगा हुआ कालकूट विष सर्वसाधारण के लिये मारक विष ही है। मूर्ख व्यक्ति पर राज्य-भार की निन्दा(स्ववधाय कृत्योत्थापनमिव मूर्खेषु राज्यभारारोपणम् // 7 // ) मूर्ख पुरुष को राज्य भार सौंपना अपने ही वध के लिए 'कृत्या उत्पन्न करने के समान है।