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________________ 46 मन्त्रिसमुद्देशः कालातिक्रमण से कार्यसिद्धि में कठिनताकालातिक्रमानखच्छेद्यमपि कार्य भवति कुठारच्छेद्यम् // 64 // समय का उल्लङ्घन करने से नाखून से काटी जा सकने वाली चीज भी कुल्हाड़ी से काटने योग्य बन जाती है अर्थात् कार्य करने का समय बीत जाने पर सरल कार्य भी अत्यन्त कठिन हो जाता है। समझदार को पहिचानको नाम सचेतनः सुखसाध्यं कार्य कृच्छ्रसाध्यमसाध्यं वा कुर्यात् / / 65 // कौन समझदार व्यक्ति सरलता से सिद्ध हो जाने वाले काम को कठिनाई से सिद्ध होने वाला अथवा असाध्य बनावेगा। मन्त्रियों की संख्या के सिषय में छह सूत्र एको मन्त्री न कर्त्तव्यः // 66 // राजा को एक मन्त्री नहीं रखना चाहिए। एको हि मन्त्री निरवग्रहश्चरति मुह्यति च कार्येषु कृच्छषु / / 67 // अकेला मन्त्री निरंकुश एवं स्वतन्त्र हो जाता है और कठिन काम आ पड़ने पर मोह-अज्ञान में पड़ जाता है समझ नहीं पाता कि क्या करे / द्वीवपि मन्त्रिणौ न कार्यों / / 68 दो मन्त्री भी न बनावे। द्विौ मन्त्रिणौ संहतो राज्यं विनाशयतः / / 66 / / दो मन्त्री परस्पर में सलाह करके राज्य का नाश कर डालते हैं। (निग्रहीतौ तौ तं विनाशयतः / / 70 // यदि उन दोनो को दण्ड दिया जाता है तो वे राजा को ही नष्ट कर देते हैं / अतः (त्रयः पञ्च सप्त वा मन्त्रिणस्तैः कार्याः // 71) अतः, तीन पांच अथवा सात मन्त्री राजा को रखना चाहिए / मन्त्रियों में एकता की आवश्यकता-- ____ विषमपुरुषसमूहदुर्लभमैकमत्यम् // 72 / / परस्पर प्रतिकूल विचार वाले पुरुषों-मन्त्रियों का एकमत हो जाना कठिन होता है। परस्पर द्वेषी मन्त्रियों के दोष। बहवो मन्त्रिणः स्वमतीरुत्कर्षयन्ति // 73 // अनेक मन्त्रो अपनी-अपनी राय-बात को उत्कृष्ट सिद्ध करना चाहते हैं और इस आपस की खींचतान से राजा का काम बिगड़ता है। 4 नी०
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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