SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन्त्रिसमुद्देशः 47 स्वामी के द्वारा सुप्रतिष्ठित भेड़ा भी सिंह के समान बली हो जाता है। मन्त्रणा के समय ध्यान देने योग्य बातेंमन्त्रकाले विगृह्य विवादः स्वैरालापश्च न कर्त्तव्यः // 46 // ) मन्त्रणा के ममय मन्त्रियों को परस्पर झगड़कर विवाद और मनमानी बातचीत न करनी चाहिए। मन्त्रणा के योग्य व्यक्ति(अविरुद्धैरस्वैरैर्विहितो मन्त्रो, लघुनोपायेन महतः कार्यस्य सिद्धि. मन्त्रफलम् / / 50 जो परस्पर विरोधी और ईया-द्वेष वाले न हों तथा बहुत स्वच्छन्द आचरणवाले न हों उनके साथ परामर्श मन्त्रणा है और लघु साधनों से भी महान् कार्य सिद्धि मन्त्रणा का फल है। न खलु तथा हस्तेनोत्थाप्यते ग्रावा यथा दारुणा // 51 / / पत्थर हाथ से उस प्रकार नहीं उठाया जा सकता जैसा कि लकड़ी के सहारे से। राजा की इच्छा मात्र का अनुसरण करना मन्त्री का दोष हैस मन्त्री शत्रुर्यो नृपेच्छयाऽकार्यमपि कार्यरूपतयाऽनुशास्ति / / 52 / / वह मन्त्री नहीं शत्रु है, जो राजा की इच्छा देखकर अकायं को भी कार्य बतलाता है। वरं स्वामिनो दुःखं न पुनरकार्योपदेशेन तद्विनाशः // 53 // ___ इच्छा के विघात से स्वामी को दुःख होना अच्छा है, किन्तु न करने योग्य काम का उपदेश देकर उसका विनाश करना उचित नहीं है। पीयूषमपिबतो बालस्य किं न क्रियते कपोलहननम् // 54) अमृत अथवा अमृत के समान हितकारी औषध आदि को पीना न चाहने वाले बच्चे को क्या माता गाल में थप्पड़ लगाकर नहीं पिलाती। मन्त्री की किसी से घनिष्ठता अनुचित हैमन्त्रिणो राजद्वितीयहृदयत्वान्न केनचित् सह संसर्ग कुर्युः / / 55 / / मन्त्रिगण राजा के दूसरे हृदय-रूप होते हैं अतः उनको किसी के साथ घनिष्ठ स्नेह आदि नहीं रखना चाहिए। राजा और मन्त्री का एकचित्त होना(राज्ञोऽनुग्रहणविग्रहावेव मन्त्रिणामनुग्रहविग्रहौ / / 56 // राजा की ही अनुकूलता और प्रतिकूलता मन्त्रियों को अनुकूलता प्रतिकूलता है अर्थात् राजा जिस पर कृपा करे अथवा जिससे द्वेष करे मन्त्रियों के लिये भी वे ही ग्राह्य और अग्राह्य होने चाहिएं।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy