SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 46 नीतिवाक्यामृतम् हृदय के आशय को प्रकट करनेवाली चेष्टा इङ्गित है। कोपप्रसादजनिता शारीरी विकृतिराकारः / / 27 / / क्रोध अथवा हर्ष के कारण उत्पन्न शारीरिक विकार का नाम आकार है। मानस्त्रीसंगादिजनितो हर्षो मदः // 28 // मदपान और स्त्रीसंभोग आदि से उत्पन्न हर्ष मद है। प्रमादो गोत्रस्खलनादिहेतुः // 36 // नाम आदि के कहने में अक्षरों का उल्टा सीधा हो जाना प्रमाद है। अन्यथा चिकीर्षतोऽन्यथावृत्तिर्वा प्रमादः / / 40 // अथवा कुछ करना चाहते हुए कुछ दूसरा करना प्रमाद है / निद्रान्तरितो निद्रितः // 41 // निद्रा के अधीन हो जाना निद्रितावस्था है। मन्त्रणा के पश्चात् अविलम्ब कार्य की आवश्यकता उघृतमन्त्रो न दीर्घसूत्रः स्यात् // 42 // मन्त्रणा कर लेने के अनन्तर उसके आचरण में विलम्ब न करे। प्रयोग के बिना मन्त्र व्यर्थ है --- (अनुष्ठानेच्छां विना केवलेन किं मन्त्रेण // 43 // ) प्रयोग में लाने की इच्छा के बिना केवल मन्त्रणा से कोई लाभ नहीं होता। (न यौषधपरिज्ञानादेव व्याधिप्रशमः // 44 // कवल औषध जान लेने मात्र से व्याधि को शान्ति नहीं हो जाती। . अविवेक की निन्दानास्त्यविवेकात् परः प्राणिनां शत्रुः // 45 // अविवेक से बढ़कर प्राणियों का शत्रु दूसरा नहीं है / स्वयं कार्य करने की आवश्यकता(आत्मसाध्यमन्येन कारयन्नौषधमूल्यादेव व्याधि चिकित्सति // 46 // अपने से किया जा सकने योग्य कार्य दूसरों से कराना औषध के मूल्य मात्र के द्वारा रोग को दूर करने की इच्छा के समान व्यर्थ है। सहयोगी के हानिलाभ का अपने ऊपर प्रभाव यो यत्प्रतिबद्धः स तेन सहोदयव्ययी // 47 // जो जिससे सम्बद्ध है, उसका उसीके साथ वृद्धि और ह्रास होता है। __ स्वामी की शक्ति ही सेवक को सबल निबंल बनाती है(स्वामिनाधिष्ठितो मेषोऽपि सिंहायते // 48 / )
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy