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________________ मन्त्रिसमुद्देशः 45 नन्द राजा का पुत्र हिरण्यगुप्त शिकार खेलते खेलते वन में दूर निकल गया और रात को घर न लौट सका। उसने वहां सोते हुए अपने एक मित्र को खङ्ग से भार डाला / मरते समय उस मित्रने 'अप्रशिख' इन चार अक्षरों का उच्चारण किया और उसकी मृत्यु हो जाने पर राजकुमार को पश्चात्ताप हुआ और वह पागल हो गया। राजदूत जब उसे महल में लाये तो उसका पिता नन्द उसकी विक्षिप्तावस्था देखकर बड़ा दु:खी हुआ। उसके द्वारा प्रतिक्षण उच्चारित अ-प्र-शि-ख इन चार अक्षरों को सुनकर उसका अर्थ जानने के लिये वह चिन्तित रहने लगा। अनन्तर उसके मन्त्री वररुचि ने वन में जाकर प्रच्छन्न रूप से बरगद के वृक्ष पर बैठकर पिशाचों द्वारा आपस की वार्ता में इस प्रसङ्ग को पूर्ण रूपसे जान लिया और उपयुक्त श्लोक बनाकर राजा को सुनाया और अर्थ समझाया कि तुम्हारे इस पुत्र ने वन में सोए हुए मित्र की शिखा पर से दबाकर तलवार से उसका सिर काट डाला। __ मन्त्रणा के अयोग्य व्यक्ति___ न तैः सह मन्त्रं कुर्यात् येषां पक्षीयेष्वपकुर्यात् / / 31 // (जिनके पक्ष के लोगों के साथ कोई अहित कार्य किया हो उनके साथ परामर्श न करे। अनायुक्तो मन्त्रकाले न तिष्ठेत् / / 32 / / मन्त्रणा के समय ऐसा कोई भी व्यक्ति वहां न रहे जिसको बुलाया न गया हो। तथा च श्रूयते शुक-सारिकाभ्यामन्यैश्च तिर्यग्भिर्मन्त्रभेदः कृतः // 33 // सुना जाता है कि तोता, मैना तथा अन्य पशु-पक्षियों ने भी मन्त्रणा का रहस्य प्रकट कर दिया। मन्त्र-भेद से उत्पन्न दोष की कठिनाई... मन्त्रभेदादुत्पन्नं व्यसनं दुष्प्रतिविधेयं स्यात् // 34 // मन्त्रणा का रहस्य प्रकट हो जाने से उत्पन्न संकट बहुत कठिनाई से दूर होता है। मन्त्र-भेद के कारणइङ्गितमाकारो मदः प्रमादो निद्रा च मन्त्रभेदकारणानि // 35 // इङ्गित ( हाय, आँख आदि का इशारा ! मुख और शरीर की आकृति, मदपान, असावधानी और निद्रा ये पांच मन्त्रभेद के मुख्य कारण हैं। मन्त्रभेद के कारणों के लक्षणइङ्गितमन्यथावृत्तिः / / 36 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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