________________ मन्त्रिसमुद्देशः शस्त्र की तरह उन लोगों का वह शास्त्र ज्ञान भी व्यर्थ है जिन लोगों का चित्त प्रतिपक्षी अथवा प्रतिद्वन्द्वी को देखने से भयाकुल हो जाता है। (तच्छखं शास्त्रं वात्मपरिभवाय यन्न हन्ति परेषां प्रसरम् // 20 // जो शस्त्र अथवा शास्त्र दूसरे के आक्रमण को न रोक सके वह अपने ही अनादर का कारण होता है। (नहि गली बलीवर्दो भारकर्मणि केनापि युज्यते / / 21 / / ) बोझा ढोने के लिये सुस्त बैल को कोई नहीं उपयोग में लाता / विशेषार्थ-प्रसंगानुकूल यहां यह अर्थ है कि स्वस्थ सबल तथा अन्य बातों से युक्त मन्त्री यदि उत्साह सम्पन्न और स्फूर्ति से युक्त नहीं है, कार्यों में विलम्ब करता है तो राजा को उसे नहीं रखना चाहिए / राजा के लिये मन्त्रणा की आवश्यकतामन्त्रपूर्वः सर्वोऽप्यारम्भः क्षितिपतीनाम् / / 22 / / राजाओं को अपना समस्त कार्य मन्त्रियों से परामर्श पूर्वक ही प्रारम्भ करना चाहिए। मन्त्र-बल की उपयोगिताअनुपलब्धस्य ज्ञानम् , उपलब्धस्य निश्चयः, निश्चितस्य बलाधानम् , अर्थस्य द्वैधस्य संशयच्छेदनम् , एकदेशलब्धस्याशेषोपलब्धिरिति मन्त्रसाध्यमेतत् // 23 // __ अप्राप्त वस्तु, भूमि, देश कोष आदि का अनुसन्धान, उपलब्ध के विषय में पूर्ण निश्चयात्मक ज्ञान, निश्चित के विषय में भी प्रमाणान्तरों से पुष्टि करना, संशयात्मक विषय में संशय दूर करना; किसी वस्तु, भूमि, देश आदि का एक भाग प्राप्त हो जाने पर पूर्ण की प्राप्ति करना यह सब काम मन्त्रणा से सिद्ध होते हैं। .. . योग्य मन्त्री का लक्षणअकृतारम्भस्यारम्भमारब्धस्याप्यनुष्ठानमनुष्ठितस्य विशेषविनियोगसम्पदं च ये कुर्युस्ते मन्त्रिणः / / 25 // बिना किये हुए अर्थात् नये-नये कार्यों का प्रारम्भ करना, प्रारम्भ किये गये कार्यों का चालू रखना, और किये हुए अर्थात् पूर्ण कार्यों में उस के उपयोग की और व्यवहार की विशेषता बतलाना-इतना जो कर सकें वे मन्त्री होने योग्य हैं। मन्त्रणा के अङ्गकर्मणामारम्भोपायः, पुरुषद्रव्यसम्पद्, देशकालविभागोविनिपातप्रतीकारः कार्यसिद्धिश्चेति पञ्चाङ्गो मन्त्रः 25 / /