________________ दण्डनीतिसमुद्देशः विशेषार्थ-प्रासङ्गिक अर्थ यह होगा कि इन राष्ट्रकण्टकों को नष्ट करने के लिये अप्रिय भी दमन-नीति अपनानी चाहिए। अहिदष्टा स्वाङ्गलिरपि च्छिद्यते / / 26 // सर्प से डसी गई अपनी अगुलि भी समस्त शरीर की रक्षा की दृष्टि से काट डाली जाती है। [इति वार्ता समुद्देशः] 9. दण्डनीतिसमुद्देशः दण्ड की आवश्यकता(चिकित्सागम इव दोषविशुद्धिहेतुर्दण्डः // 1 // ) शारोरिक वात-पित्त-कफ आदि के दोषों को दूर करने के लिये जिस प्रकार चिकित्सा शास्त्र है उसी प्रकार राष्ट्र के दोषों को दूर करने के लिये दण्डनोति है। दण्डनीति का स्वरूपयथादोषं दण्डप्रणयनं दण्डनीतिः // 20 // दोष की न्यूनाधिकता के अनुसार ही दण्डविधान करना दण्डनीति है। प्रजापालन दण्डविधान का उद्देश्य(प्रजापालनाय राज्ञा दण्डः प्रणीयते न धनार्थम् // 3 // ) प्रजापालन के लिये राजा दण्ड का विधान करता है अर्थसंग्रह के लिये नहीं। धनसंग्रहार्थ दण्ड-विधान की निन्दा(स किं राजा वैद्यो वा यः स्वजीवनाय प्रजासु दोपभन्वेषयति // 4 // अपने जीवन निर्वाह के लिये लोगों को झूठ-मूठ रोगो बताने वाला वैद्य जैसे बुरा हैं उसी प्रकार वह राजा भी कुत्सित राजा है जो अपने निमित्त धन संग्रह के लिये प्रजा में दोषों को निकाल कर अर्थदण्ड करता है। राजा द्वारा स्वयं अनुपभोग्य धनदण्डद्यताहवमृतविस्मृतचौरपारदारिकप्रजाविप्लवजानि द्रव्याणि न राजा स्वयमुपयुञ्जीत / / 5 / / . जुर्माना करने से प्राप्त धन, जुए से प्राप्त, संग्राम में किसी के मर जाने से प्राप्त, किसी का भूला हुआ धन, चोरों का घन परस्त्रीगमन आदि से संबंध रखने वाला धन, प्रजा में विप्लव हो जाने पर लूट-पाट से आया हुआ धन इतने प्रकार के धनों को राजा स्वयम् उगयोग में न लावे /