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________________ नीतिवाक्यामृतम् अविवेकपूर्ण दण्डनीति से राज्य की क्षति(दुष्प्रणीतो हि दण्डः कामक्रोधाभ्यामज्ञानाद्वा सर्वविद्वेषं करोति // 6 // काम-क्रोध के वशीभूत होकर अथवा अज्ञानवश दिये गये दण्ड से राजा से समस्त प्रजा विद्वेष करने लगती है। (अप्रणीतो हि दण्डो मात्स्यन्यायमुत्पादयति / / 7 // यथा दोष दण्ड न देने से राज्य में 'मात्स्य-न्याय' को प्रवृत्ति होती है। मात्स्य न्याय क्या है__बलीयानबलं असति इति मात्स्यन्यायः / / / / ... सिस प्रकार जल में बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा जाती है उसी प्रकार दण्ड का डर न होने पर बलवान् निर्बल को सताते हैं। यही मात्स्य न्याय है। इति दण्डनीतिसमुद्देशः। 10. मन्त्रिसमुद्देशः अहार्यबुद्धि राजा का लक्षणमन्त्रिपुरोहितसेनापतीनां यो युक्तमुक्तं करोति स अहार्यबुद्धिः // 1 // मन्त्री, पुरोहित और सेनापति इनकी युक्तियुक्त बात को जो राजा मानता है वह 'अहार्य बुद्धि होता है / अर्थात् शत्रुओं द्वारा वह बुद्धिबल में परास्त नहीं होता। सत्सङ्गति का माहात्म्य( असुगन्धमपि सूत्रं कुसुमसंयोगात् किन्नारोहति देवशिरसि / / 2 / / ) डोरे में यद्यपि सुगन्ध नहीं होता तयापि क्या वह फूल के सम्पर्क से देवताओं के शिर पर नहीं चढ़ता / (महद्भिः पुरुषैः प्रतिष्ठितोऽश्मापि भवति देवः किं पुनर्मनुष्यः // 3 // - महान् पुरुषों से प्रतिष्ठित पाषाण भी देवत्व को प्राप्त होता है तो फिर ममुख्य का क्या कहना है / अर्थात् क्षुद्र मनुष्य भी महत् पुरुषों के संयोग से महत्त्व को प्राप्त होता है। ___ तथा चानुभूयते विष्णुगुप्तानुग्रहादनधिकृतोपि किल चन्द्रगुप्तः साम्राज्यपदमवापेति // 4 // जैसा कि इतिहास बताता है कि चंद्रगुप्त राज्य पद के लिये अनधिकारी होते हुए भी विष्णुगुप्त की कृपा से साम्राज्य पद को प्राप्त कर सका। मन्त्रिपद के लिये अपेक्षित योग्यताब्राह्मणक्षत्रियविशामेकतमं स्वदेशजमाचाराभिजनविशुद्धनव्यसनिन
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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