________________ नीतिवाक्यामृतम् . 8. वार्तासमुद्देशः वैश्यों की आजीविका का वर्णन(कृषिः पशुपालनं वणिज्या च वार्ता वैश्यानाम् // 1 // ) (खेती, पशुपालन और व्यापार ये वैश्यों की आजीविकायें है।) 'वार्ता' की समृद्धि से राजा की समृद्धि(वार्तासमृद्धौ सर्वाः समृद्धयो राज्ञः / / 2 / / राज्य में वार्ता की समृद्धि से राजा की सब प्रकार की समृद्धि होती है। कृषि, पशुपालन और व्यापार का सक्षिप्त नाम 'वार्ता' है / ___ सांसारिक दृष्टि से कौन सुखी है(तस्य खलु संसारसुखं यस्य कृषिर्धेनवः शाकवाटः समन्युदपान च // 3 // उसको संसार का समस्त सुख भोग प्राप्त है जिस को खेती हो, गाय-बैल हों, शाक आदि के लिये बाड़ी या बगीचे हों और घर में ही पेय जल का प्रबन्ध हो। अपव्ययी राजा की हानि का वर्णन-- (विसाध्यराज्ञस्तन्त्रपोषणे नियोगिनामुत्सवो महान् कोशक्षयश्च // 4 // तंत्र-पोषण में व्यथं विशेष व्यय करने वाले राजा के अधिकारियों के यहाँ तो उत्सव ममता है पर राजा के कोष की महती क्षति होती है।) ( नित्यं हिरण्यव्ययेन मेरुरपि क्षीयते // 5 // ) सदा स्वर्ण-व्यय करने से सुमेरु जैसी विशाल धन-राशि भी विमष्ट हो जाती है / (तंत्र सदैव दमिक्षं यत्र राजा विसाधयति / / 6 // जहां राजा फजूलखर्ची होता है वहां सदा ही दुर्भिक्ष की स्थिति बनी रहती है। (समुद्रस्य पिपासायां कुतो जगति जलानि / / 7 / / समुद्र ही यदि प्यासा हो जाय तो उस अनन्त जल-राशि को पूर्ण करने के लिये संसार में और कहां जल मिलेगा। (स्वयं जीवधनमपश्यतो महती हानिर्मनस्तापश्च क्षुत्-पिपासाऽप्रतिकारात् पापं च // 8 // पशुधन की स्वयं देखभाल न करने से बड़ी हानि होती है मन को संताप भी होता है तथा मूक पशुओं के भूखे-प्यासे बंधे रहने पर पाप भी होता है।