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________________ 34 नीतिवाक्यामृतम् . राजा समस्त वर्ण और पाश्रम वालों द्वारा किये गये धर्मानुष्ठान के छठे अंश का भागी होता है। तपस्वियों द्वारा भी राजा का सम्मान(उब्छषड्भागप्रदानेन तपस्विनोऽपि राजानं संभावयन्ति // 24 // कण-कण बटोर कर अन्न इकट्ठा कर जीवन निर्वाह करना उञ्छवृत्ति है। उञ्छ का छठा हिस्सा देकर तपस्वी भी राजा का समादर करते हैं। तस्यैतद् भूयाद् योऽस्मान् रक्षति // 25 // ___ तपस्वी कहते हैं यह षष्ठांश उस राजा को प्राप्त हो जो हमारी रक्षा करता है। मङ्गल और अमङ्गल की मान्यतातदमङ्गलमपि नामङ्गलं यत्रास्यात्मनो भक्तिः // 26 / / ) . जिस पर अपनी श्रद्धा-भक्ति हो वह वस्तु या व्यक्ति अमंगलकारक होने पर भी अमंगलकारक नहीं होता। पुरुष के कर्तव्यसन्यस्ताग्निपरिग्रहानुपासीत // 27 // संन्यासी और याज्ञिकों की उपासना करनी चाहिए। स्नान के अनन्तर आवश्यक कर्तव्य(स्नात्वा प्राग्देवोपासनान्न कंचन स्पृशेत् // 28 // ) स्नान के अनन्तर जव तक देवोपासना न कर ले तब तक किसी का स्पर्श न करे। देवमन्दिर में जाने पर गृहस्थ का कर्तव्यदेवागारे गतः सर्वान् यतीन् आत्मसंबन्धिनीर्जरतीः पश्येत् // 26 // देवालय में पहुँच कर समस्त यतियों और कुलवृद्धाओं से शिष्टाचार करे / राजा और साधु का सत्कार आवश्यक है(देवाकारोपेतः पाषाणोऽपि नावमन्येत तत्किं पुनर्मनुष्यः / राजशास. नस्य मृत्तिकायामिव लिंगिषु को नाम विचारो यतः स्वयं मलिनो खलः प्रवर्धयत्येव क्षीरं धेनूनाम् / न खलु परेषामाचारः स्वस्य पुण्यमारभते किन्तु मनोविशुद्धिः // 30 // देवाकार को प्राप्त पाषाण का भी तिरस्कार नहीं करना चाहिये मनुष्य तो दूर रहा / राज्यशासन की मुहर मिट्टी पर भी महत्त्वपूर्ण होती है / रूप या वेषधारी वस्तु का विचार नहीं किया जाता। क्योंकि स्वयं मलिन भी खली, गायों का दूध ही बढ़ाती है। दूमरों के आधार से अपना पुण्य नहीं बढ़ता, वह तो मन को निमलता पर निर्भर है /
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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