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________________ W त्रयीसमुद्देशः स्वधर्म का पालन न करने का प्रायश्चित्त(स्वधर्मव्यतिक्रमेण यतीनां स्वागमोक्तं प्रायश्चित्तम् // 16 // यदि यति या सन्यासी स्वधर्म पालन से च्युत हो जाय तो उनको अपने बागम में वर्णित प्रायश्चित्त करने चाहिएं। श्रद्धा के अनुरूप उपासना करनी चाहिए. 5 यो यस्य देवस्य भवेच्छ्रद्धावान् स तं देवं प्रतिष्ठापयेत् // 17 // __जो जिस देवता विशेष के प्रति श्रद्धालु हो वह उसी की उपासना या प्रतिष्ठा करें। भक्तिहीन पूजन से दोषअभक्त्या पूजोपचारः सद्यः शापाय // 18 // बिना भक्ति की पूजा तत्काल शापदायक होती है। ___ आचार से च्युत होने पर शुद्धि का उपाय वर्णाश्रमाणां स्वाचारप्रच्यवने त्रयीतो विशुद्धिः // 16 // ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यासी, ये जब अपने आचार से च्युत हों तो उनकी शुद्धि 'त्रयी' अर्थात् पूर्वोक्त चतुर्दश विद्या स्थानों में वणित विधानों के अनुसार होती है। राजा के लिये त्रिवर्ग प्राप्ति का उपायस्वधर्मासङ्करः प्रजानां राजानं त्रिवर्गेणोपसंधत्ते / / 20 // प्रजा में यदि राजा की शासन कुशलता से धर्म-सांकर्य, वर्ण-संकरता आदि दोष नहीं उत्पन्न हो पाते तो राजा को धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति होती है, अर्थात् राजा सुखी रहता है। प्रजा की रक्षा राजा का प्रमुख कत्र्तव्य स किंराजा यो न रक्षति प्रजाः // 21 // वह राजा राजा नहीं है अर्थात् निन्दनीय है जो अपनी प्रजा की रक्षा नहीं करता। राजा की आवश्यकता(स्वधर्ममतिकामतां सर्वेषां पार्थिवो गुरुः // 22 // * अपने धर्म का उल्लङ्घन करने वाले समस्त व्यक्तियों का अनुशासक राजा ही है। प्रजापालक राजा को प्रजा के धर्मपालन का छठा भाग प्राप्त होनापरिपालको हि राजा सर्वेषा धर्मषष्ठांशमवाप्नोति / / 23 // लोग अपने अपने धर्म का परिपालन करते रहें, इस प्रकार का रक्षक ३नी०
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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