________________ नीतिवाक्यामृतम् शूद्रों के नियत कर्म(त्रिवर्णोपजीवनं कारूकुशीलवकर्म शकटोपवाहनं च शूद्राणाम् // 10 // ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की सेवा, शिल्पकार्य, कथक अथवा चारण कार्य और गाड़ी ढोना यह सब शूद्र के कर्तव्य हैं / सच्छूट के लक्षण(सकृतपरिणयनव्यवहाराः सच्छदाः // 11 // ) कन्याओं का एक बार ही विवाह करने की मर्यादा का पालन करनेवाले शूद्रों को सत् शूद्र कहते हैं / . शूद्र भी देवपूजा आदि के अधिकारी होते हैं- .. आचारानवद्यत्वं शुचिरुपस्कारः शारीरी च विशुद्धिः करोति शूद्रमपि देवद्विजतपस्विपरिकर्मसु योग्यम् // 12 // ___ अनिन्द्य, आचार-व्यवहार घर के सामानों को साफ सुथरा रखना, तथा शरीर की शुद्धि स्नानादि के द्वारा करने से शूद्र भी देवता, ब्राह्मण और तपस्वियों की पूजा-परिचर्या के योग्य होते है / सर्वसाधारण के द्वारा पालन योग्य धर्म(आनृशंस्यममृषाभाषित्वं, परस्वनिवृत्तिः, इच्छा नियमः प्रति. लोमाविवाहो निषिद्धासु च स्त्रीषु ब्रह्मचर्यमिति सर्वेषां समानो धर्मः // 13 // भृदुता, असत्य भाषण न करना, पराये धन को न लेने की प्रवृत्ति, इच्छाओं पर नियन्त्रण स्वजाति में ही शास्त्रानुमोदित विवाह करना, निषिद्ध स्त्रियों के साथ समागम न करना, सब वर्ण और आश्रम वालों के लिये समानरूप से पालन करने योग्य धर्म हैं। साधारण धर्म की विशेषताआदित्यालोकनवत् धर्मः खलु सर्व साधारणो विशेषानुष्ठाने तु नियमः // 14 // जिस प्रकार सूर्य का दर्शन करने का ब्राह्मण और चाण्डाल को समान अधिकार प्राप्त है उसी प्रकार मदुता सत्यभाषिता आदि उपयुक्त धर्म सबके लिये समान हैं / विशेष प्रकार के धर्मानुष्ठान के लिये ही विशेष नियम हैं। यतियों का स्वधर्म(निजागमोक्तमनुष्ठानं यतीनां स्वोधर्मः // 15 // अपने सम्प्रदाय के अनुकूल शास्त्रों में वर्णित आचार-विचार का परिपालन यतियों का स्वधर्म है।