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________________ 29 नीतिवाक्यामृतम् . रहती है उनको ऐहलौकिक और पारलौकिक कोई भी सुख नहीं प्राप्त होते / कुत्सित पुरुष का लक्षणस किंपुरुपो यस्य महाभियोगे सुवंश धनुष इव नाधिकं जायते बलम् / / 25 // अच्छी किस्म के बांस से बनाये गये धनुष पर बाण चढ़ाते समय जिस प्रकार अधिक दृढ़ता प्रतीत होती है उसी प्रकार महान् आपत्ति आने पर जिस पुरुष में दृढ़ता न उत्पन्न हो, स्थिरता और गम्भीरता न हो वह पुरुष कुत्सित पुरुष है। इच्छा का लक्षणआगामिक्रियाहेतुरभिलाषो वेच्छा // 26 // ) भविष्य में होने वाली क्रिया का जो कारण है वहीं अभिलाष अथवा इच्छा है। (आत्मनो प्रत्यवायेभ्यः प्रत्यावर्त्तनहेतुषोऽनभिलाषो वा / / 27 // ) दोषो से बचने के उपायअपने को प्रत्यवाय अर्थात् दोषों से बचाये रखने के लिये दो उपाय हैं / प्रथम उन दोषों और बुराइयों से घृणा करना दूसरा उन दोषों को करने की इच्छा ही न करना। उत्साह का लक्षणहिताहितप्राप्तिपरिहारहेतुरुत्साहः // 28 // जिस भाव के कारण मनुष्य की भलाई हो और बुराई दूर हो उसका नाम उत्साह है। प्रयत्न की परिभाषा(प्रयत्नपरिनिमित्तको भावः // 26 // मनुष्य के हृदय में कार्य करने के निमित्त जो भाव उत्पन्न होता है उसी का नाम प्रयत्न है / ___ संस्कार की दो परिभाषाएं(सातिशयलाभः संस्कारः // 30 // राजा अथवा जनता से अतिशय आदर आदि की प्राप्ति संस्कार हैं। अनेकजन्मकर्माभ्यासवासनावशात् सद्योजातादीनां स्तन्यपिपासा. दिकं येन क्रियते इति संस्कारः / अनेक जन्म में किये गये कर्मों के अभ्यास की वासना के वश होकर तुरन्त उत्पन्न हुए प्राणी के मन में जो दूध पीने आदि की प्रवृत्ति होती हैवह संस्कार है।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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