________________ 27 आन्वीक्षिकीसमुद्देशः विषय का लक्षणइन्द्रियमनस्तर्पणो भावो विषयः / / 16 // जिस भाव अथवा पदार्थ से इन्द्रिय और मन को तृप्ति अथवा सन्तोष हो उसका नाम विषय है। दुःख का स्वरूप दुःखमप्रीतिः / / 17 // अप्रीति ही दुःख है। विशेषार्थ-शीतल, मन्द, सुगंध, समीर, सुंदर प्राकृतिक दृश्य सन्मुख होते हुए भी यदि मन आनन्दित नहीं है तो ये सुखकर पदार्थ भी दुःखकर हैं / बहुत से आभूषणों और वस्त्रों का बोझ शरीर पर लादे रहना वस्तुतः सुखकारक तो नहीं होता, किन्तु उस सज्जा से मन को प्रसन्नता होती है अतः वह सुख माना जाता है। इन्हीं बातों को दृष्टिगत कर आगे का सूत्र है। (तद्दुःखमपि न दुःखं यत्र न संक्लिश्यते मनः // 18 // - वह दुःख भी दुःख नहीं है जिसमें मन को क्लेश न हो। - दुःख के चार भेद(दुःखं चतुर्विधं सहजं दोषजमागन्तुकमन्तरंगञ्चेति // 1D दुःख चार प्रकार के हैं सहज, दोषज, आगन्तुक और अन्तरङ्ग / सहजं क्षुत्तर्षपीडा मनोभूभवं चेति // 20 // __ भूख, प्यास और मनरूपी पृथ्वी पर उत्पन्न होनेवाले क्रोध ईर्ष्या आदि सहज दुःख हैं। ....... दोषजं वातपित्तकफवैषम्यसंभूतम् // 21 // वात, पित्त और कफ के विकृत होने से उत्पन्न होनेवाले दुःख दोषज ..... आगन्तुकं वर्षातपादिजनितम् / / 22 // वर्षा और धूप आदि से उत्पन्न दुःख आगन्तुक दुःख है। जयकारावज्ञेच्छाविघातादिसमुत्थमन्तरङ्गजम् // 23 // धिक्कार, अपमान, और इच्छाओं के पूर्ण न होने से उत्पन्न दुःख अन्तरंगज दुःख हैं ! ___ सदा खिन्न रहने से दोष___ न तस्यैहिकमामुष्मिकं च फलमस्ति यः क्लेशायासाभ्यां भवति विप्लवप्रकृतिः / / 24 // निरन्तर क्लेश और अधिक परिश्रम से जिनकी प्रकृति सदा खिन्न