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________________ नीतिवाक्यामृतम् ज्ञान का लक्षणसमाधीन्द्रियद्वारेण विप्रकृष्टसन्निकृष्टावबोधो ज्ञानम् // 6 // समाधि अर्थात् ध्यान पूर्वक चिन्तन करने से तथा आंख, कान, नाक, मुंह हाथ आदि इन्द्रियों से देखने-सुनने आदि के द्वारा हम जो कुछ परोक्ष और प्रत्यक्ष वस्तु के विषय में जान पाते हैं, उसी का नाम ज्ञान है। सुख का स्वरूप सुखं प्रीतिः / / 10 / / मन और इन्द्रियां जिससे आनन्दित हों उसका नाम सुख है / '' (तत्सुखमप्यसुखं यत्र नास्ति मनोनिवृतिः // 11 // ) वह सुख भी सुख नहीं है जिससे मन को पूर्ण आह्लाद न हो। सुख के कारणअभ्यासाभिमानसंप्रत्ययविषयाः सुखस्य कारणानि / / 12 / / . अभ्यास, अभिमान, सम्प्रत्यय और विषय ये सुख के कारण है। अभ्यास की परिभाषाक्रियातिशयविपाकहेतरभ्यासः // 13 // किसी परिणाम पर पहुंचने की दृष्टि से अथवा सिद्धि प्राप्त करने के निमित्त किसी किया को बारम्बार करना अभ्यास है। जैसे शास्त्र और शास्त्र में कुशलता प्राप्त करने की दृष्टि से उनको बार बार दोहराते रहना अभ्यास है। अभिमान के लक्षण:( प्रश्रयसत्कारादिलाभेनात्मन उत्कृष्टत्वसंभावनमभिमानः // 14 // महान व्यक्ति अथवा समाज के द्वारा आश्रय अथवा सम्मान आदि मिलने पर व्यक्ति को अपने में जो उत्कर्ष की भावना होती है वही वस्तु अभिमान है। सम्प्रत्यय का स्वरूप(अतद्गुणवस्तुनि तद्गुणत्वेनाभिनिवेशः सम्प्रत्ययः // 15 // वस्तुत: जिसका जो गुण नहीं है उस में उसगुण का अभिनिवेश अर्थात् आग्रह करने का नाम सम्प्रत्यय है / विशेषार्थ-सम्प्रत्यय से सुख होता है। जैसे सौन्दर्य मांसपिण्ड का अथवा स्त्री-पुरुष का वास्तविक अथवा नित्य रहने वाला गुण नहीं हैं। सुन्दर से सुन्दर मनुष्य रोगी होकर कुरूप हो जाता है, किन्तु मनुष्य स्त्री अथवा पुरुष विशेष को सुन्दर मानकर उस पर आसक्त होता है और सुख का अनुभव करता है / इस प्रकार मानव के अभिनिवेश का नाम सम्प्रत्यय है /
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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