________________ 25 आन्धीक्षिकीसमुदेशद्र अपना मन, इन्द्र से भी दुर्जय इन्द्रियों, शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध आदि विषय और स्वप्रकाश रूप ज्ञान यही जिस के आत्मा के क्रीड़ा स्थान हों वह आत्मा राम है, आत्मन्येव रमते इत्यात्मारामः / आत्मा का स्वरूपयत्राहमित्यनुपचरितः प्रत्ययः स आत्मा // 4 // जिस पदार्थ में मैं हूं ऐसी औपचारिक नहीं, किन्तु वास्तविक अनुभूति हो वह आत्मा है। आत्मा की अमरता न मानने से दोषअसत्यात्मनि प्रेत्यभावे विदुषां विफलं खलु सर्वमनुष्ठानम् // 5 // मृत्यु के उपरान्त आत्मा की सत्ता न स्वीकार करने पर बड़े-बड़े विद्वानों का अनेक शुभ कार्यों में प्रवृत्त होना ही व्यर्थ हो जायगा। विशेषार्थ-चैतन्य विशिष्ट देह ही आत्मा है इसलिये जब देह नष्ट हो गया अर्थात् प्राणी मर गया तो आत्मा भी नष्ट हो गया इस प्रकार का विचार रखने वाले चार्वाक आदि के प्रति यहां यह कहा गया है कि यह विचार उपयुक्त और ठीक नहीं है; क्योंकि संसार में मूर्ख नहीं अपितु बड़े-बड़े विद्वान यज्ञ, दान, वेदाध्ययन आदि शुभ कर्मों में इसी विश्वास से लगे रहते हैं कि इनका उनको जन्मान्तर में इहलोक और परलोक में सुन्दर फल प्राप्त होगा / यदि शरीर के साथ 'आत्मा' भी नष्ट हो जाता तो विद्वान् ऐसे कार्यों को क्यों करते ? क्योंकि जब मूर्ख से भी मूर्ख मनुष्य बिना प्रयोजन के किसी काम में नहीं लगता तो फिर विद्वानों के विषय में तो कहना ही क्या है / अतः जन्मान्तर में सुख का भोक्ता, द्रष्टा, व्यापक शाश्वत आत्म पदार्थ है / मन का लक्षण... यतः स्मृतिः प्रत्यवमर्षणम् , ऊहापोहनम् , शिक्षालापक्रियाग्रहणं च भवति तन्मनः // 6 // जिसके द्वारा हम किसी चीज को याद रख सकते हैं, चिन्तन कर सकते हैं, तर्क और कल्पना कर सकते हैं, खण्डन-मण्डन कर निश्चय कर सकते हैं, ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, किसी की बात-चीत को और चेष्टा को सुन-समझ सकते हैं वह मन है। इन्द्रिय लक्षणआत्मनो विषयानुभवद्वाराणीन्द्रियाणि / / 7 // * आत्मा को शब्द-स्पर्श, रूप-रस और गन्ध का जिनके द्वारा अनुभव होता है वे इन्द्रियां हैं। शब्दस्पर्शरूपरसगन्धा हि विषयाः॥८॥ शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध का नाम विषय है।