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________________ 24 नीतिवाक्यामृतम् अभिमानी नप निन्दनीय है(अन्ध इव वरं परप्रणेयो राजा न ज्ञानलवदुर्विदग्धः / / 72 // अन्धे के समान सदा सन्त्रियों आदि दूसरों के सहारे चलनेवाला राजा अच्छा है किन्तु ज्ञान के लेशमात्र से अपने को महापण्डित माननेवाला अभिमानी राजा नहीं अच्छा होता / नीलीरक्त वस्न इव को नाम दुर्विदग्धे राज्ञि रागान्तरम् आधत्ते / / 7 / / नील के रंग में रंगे हुए वस्त्र पर जिस प्रकार कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ता उसी प्रकार 'ज्ञान-लव-दुर्विदग्ध' ( अल्पज्ञ ) राजा के भी विचारों को बदला नहीं जा सकता। राजा गुणग्राही हों और विद्वान यथार्थवादी(यथार्थवादो विदुषां श्रेयस्करो यदि न राजा गुणद्वेषी / / 74 // ) यदि राजा गुणों से द्वेष न करनेवाला अर्थात् गुणग्राही हो तो विद्वानों को कठोर और अप्रिय होने पर भी ययार्थ तत्त्व का निवेदन करना श्रेयस्कर है। . स्वामी को अहितकर उपदेश नहीं देना चाहिए: (वरमात्मनो मरणं नाहितोपदेशः स्वामिषु // 75 // ) ___ साधु-पुरुष का स्वयं मर जाना अच्छा है, किन्तु राजा को अहित उपदेश देना अच्छा नहीं है। [इति विद्यावृद्धसमुद्देशः] 6. आन्वीक्षिकीसमुद्देशः अध्यात्मयोग का लक्षण(आत्ममनोमरुत्तत्त्वसमतायोगलक्षणो ह्यध्यात्मयोगः // 1 // चिद् रूप व्यापक आत्मा, संकल्प-विकल्प प्रवृत्ति वाला मन और शरीरस्थ प्राणवायु इन पर समान रूप से अधिकार रखना 'अध्यात्मयोग' हैं। ___ अध्यात्म के लाभ(अध्यात्मज्ञो हि राजा सहजशारीरमानसागन्तुभिर्दोषैर्न बाध्यते // 2 // अध्यात्मशक्ति संपन्न राजा भीरुता, अकर्मण्यता आदि स्वाभाविक दोष, ज्वरादि शारीरिक दोष तथा कुत्सित संकल्प करना आदि मानसिक दोषों से एवम् आकस्मिक दुर्घटना बादि आगन्तुक दोषों से पीड़ित नहीं होता। आत्माराम का लक्षणमन इन्द्रियाणि विषयाः ज्ञानं भोगायतनमित्यात्मारामः॥४॥
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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