________________ विद्यावृद्धसमुद्देशः अत्यधिक पराक्रम से लोग उद्विग्न हो जायंगे अतः क्रम-विक्रम दोनों के ही आश्रय से राज्य सुरक्षित रह सकता है।) बुद्धिमान् राजा का लक्षणक्रम-विक्रमयोरधिष्ठानं बुद्धिमानाहार्यबुद्धिर्वा // 28 // बुद्धिमान् राजा क्रम विक्रम दोनों का आश्रय लेता है। अथवा दह अत्यन्त दृढ़ संकल्प या निश्चय वाला होता है। राजा के लिये विद्या और विनय की आवश्यकता(यो विद्या विनीतमतिः स बुद्धिमान् // 26 // शास्त्र ज्ञान के कारण विनीत बुद्धि वाला बुद्धिमान है। केवल पुरुषार्थ की निन्दासिंहस्येव केवलं पौरुषावलम्बिनो न चिरं कुशन्तम् // 30 // सिंह के समान केवल पराक्रम करनेवाले. राजा का स्थायी-कल्याण नहीं होता / बुद्धिबल होने पर भी शास्त्रज्ञान की आवश्यकताअशस्त्रः शूर इवाशास्त्रः प्रज्ञावानपि भवति विद्विषां वशः॥३१॥ बिना शस्त्र के शूर के समान बिना शास्त्रज्ञान के बुद्धिमान् भी राजा शत्रु के वश हो जाता है / . __शास्त्र तीसरे नेत्र हैं- अलोचनगोचरे गर्थे शास्त्रं तृतीयं लोचनं पुरुषाणाम् // 32 // प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आंखों से जिस का ज्ञान हो सके उसके ज्ञान के लिये शास्त्र तीसरे नेत्र के समान हैं। शास्त्र न पढ़ने के दोषअनधीतशास्त्रश्चक्षुष्मानपि पुमानन्ध एव // 33 // शास्त्र न पढ़ा हुआ पुरुष आंख वाला होते हुए भी अन्धा है। . मूर्ख पुरुष की निन्दा नयज्ञानादपरः पशुरस्ति // 34 // मूर्ख पुरुष के अतिरिक्त दूसरा कोई पशु नहीं है। वरमराजकं भुवनं न तु मूर्खा राजा // 35 // ) विना रांजा का राज्य होना अच्छा है, किन्तु मूर्ख रोजा का होना अच्छा नहीं है। (असंस्कारं रत्नमिव सुजातमपि राजपुत्रं न नायकपदायामनन्ति साधवः // 36 // ) खान अथवा समुद्र से उत्पन्न रत्न को जिस प्रकार बिना खरादे हुए