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________________ 18 नीतिवाक्यामृतम् विशेषार्थ-प्राचीनकाल में अग्नि की ही प्रधान उपासना थी। यहां अग्नि केही प्राधान्य-अप्राधान्य से गृहस्थ के चार भेद किये गये हैं। जिसके जीवन में विवाह के अवसर की होमाग्नि ही अभिवन्ध हुई हो वह वैवाहिक गृहस्थ है। शालीन वह है जिसने अग्निहोत्र व्रत लिया हो, ऐसा गृहस्थ जिसने अग्नि की उपासना के साथ शूद्र का धन न लेने का व्रत लिया हो वह यायावर और जो दक्षिणादान के साथ अग्निष्टोम आदि यज्ञ में तत्पर रहता हो वह अधोर संज्ञक गृहस्थ है। वानप्रस्थ का लक्षण(यः खलु यथाविधि जानपदमाहारं संसारव्यवहारं च परित्यज्य सकलत्रोऽकलत्रो वा वने प्रतिष्ठते स वानप्रस्थः / / 22 / / ) __ जो गृहस्थ लौकिक आहार-विहार और सांसारिक व्यवहार का परित्याग कर स्त्री के साथ अथवा बिना स्त्री के विधिपूर्वक वन चला जाता है वह वानप्रस्थ है। यति का लक्षण• यो देहमात्रारामः सम्यग्विद्यानौलाभेन तृष्णासरित्तरणाय योगाय यतते स यतिः // 23 // ) स्वदेह मात्र से आनन्दित रहने वाला जो व्यक्ति ज्ञानरूपी नोका को प्राप्त कर तृष्णा-रूपो नदी को पार करने को योग मानकर उस योग के लिये यत्न करता है वह यति है। राज्य के मूल कारण और उनकी परिभाषा (राज्यस्य मलं क्रमो विक्रमश्च // 24 // ) वंश-परम्परा से राज्य प्राप्ति और शौर्य से उसका संरक्षण यह दो क्रम और विक्रम राज्य के मूल हैं। (आचारसम्पत्तिः क्रमसम्पत्तिं करोति // 25 // बंश परम्परा से प्राप्त राज्य की वृद्धि कुंलाचार पालन से होती है / (अनुत्सेकः खलु विक्रमस्यालङ्कारः // 26 // पराक्रम की शोभा गर्व न करने में है। राज्य की सुरक्षा का उपाय(क्रम-विक्रमयोरन्यतरपरिग्रहेण राज्यस्य दुष्करः परिणामः // 27 / / क्रम और विक्रम इन दोनों में से केवल एक को स्वीकार करने से राज्य के लिये अच्छा परिणाम नहीं होता। विशेषार्थ-केवल आचार पालन से राज्य में दुष्टों की वृद्धि होगी और
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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