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________________ विद्याबृद्धसमुद्देशः कृतुप्रद ब्रह्मचारी का लक्षण। कृतोद्वाहः कृ (ऋ) तु प्रदाता कृतुप्रदः / / 12 / / विवाह करके ऋतुकाल में जो स्त्रो गमन करता है उसको कुतुप्रद / (कृतप्रद ) संज्ञा है।) पुत्रोत्पत्ति के अभाव में ऋणग्रस्त की दशा का होना अपुत्रो ब्रह्मचारी पितृणामृणभाजनम् // 13 // जो ब्रह्मचारी पुत्रोत्पादन नहीं करता वह पितरों का ऋणी बना रहता है। अनध्ययनो ब्रह्मणः // 14 // ) ब्रह्मचारी होकर वेदाध्ययन न करे तो वह ब्रह्मा के प्रति ऋणी होता है। "अयजनो देवानाम् // 15 // जो ब्रह्मचारी यज्ञ नहीं करता वह देवताओं का ऋणी होता है। नैष्ठिक ब्रह्मचारी के लिये आत्मा ही पुत्र है आत्मा वै पुत्रो नैष्ठिकस्य // 16 // ) मृत्यु पर्यन्त विवाह न करने वाले नैष्ठिक ब्रह्मचारी के लिये आस्मा ही (विशेषार्थ-आत्मचिन्तन करने के कारण वह पुत्र न उत्पन्न करने आदि के उपर्युक्त दोषों से मुक्त हो जाता है। नैष्ठिक ब्रह्मचारी की उत्तम पवित्रताअयमात्मनात्मानमात्मनि संदधानः परां पूततामापद्यते // 16 // नष्ठिक ब्रह्मचारी का यह व्यापक ब्रह्ममय आत्मा, आत्मशक्ति के द्वारा अपने आत्मा में आत्मचिन्तन करता हुआ अत्यन्त पवित्र हो जाता है। गृहस्थ का लक्षण और उसके नित्य नैमित्तिक धर्म. नित्यनैमित्तिकानुष्ठानस्थो गृहस्थः // 18 // जो नित्य और नैमित्तिक अनुष्ठान करता हो वह गृहस्थ है। . ब्रह्मदेवपितृतिथिभूतयज्ञा हि नित्यमनुष्ठानम् / / 16 // यथाशक्ति परब्रह्म की आराधना, इष्ट देव की पूजा, पितरों को तर्पण, अतिथि का भोजन आदि से सत्कार और वैश्वदेवों को बलि देना इनको नित्य अनुष्ठान कहते हैं। दर्शपौर्णमास्याद्याश्रयं नैमित्तिकम् // 20 // अमावास्या और पूर्णिमा आदि विशेष तिथियों पर किया जाने वाला बाद आदि धार्मिक कृत्य नैमित्तिक कर्म है। वैवाहिक शालीनो-यायावरोऽघोरो गृहस्थाः // 21 // वैवाहिक, शालीन, यायावर और अधोर ये चार प्रकार के गृहस्थ हैं।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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