________________ नीतिवाक्यामृतम् . . भाभूषणों में नहीं प्रतिष्ठित किया जाता उसी प्रकार सुन्दर वंश में भी समु. पन्न राजकुमार को सत्पुरुष लोग शास्त्रज्ञान से संस्कृत हुए बिना प्रतिष्ठित नहीं करना चाहते। दुविनीत रोग के दोष- (न दुर्विनीताद् राज्ञः प्रजानां विनाशादपरोऽस्त्युत्पातः // 37 // दुविनीत राजा से प्रजा को विनाश से अधिक दूसरे किसी उत्पात का भय नहीं होता। दुष्ट राजा से प्रजा का भय अवश्यम्भावी है। दुविनीत का लक्षणयो युक्तायुक्तयोरविवेकी विपर्यस्तमतिर्वा स दुविनीतः / / 28 // जो राजा योग्य-अयोग्य का निर्णय न कर सके अथवा जिसकी बुद्धि विपरीत हो, बुरी बात को ही अच्छा समझे, वह दुविनीत है / 'द्रव्य' और 'अद्रव्य' प्रकृति के राजा(यत्र सद्भिराधीयमाना गुणाः संक्रामन्ति तद् द्रव्यम् // 36 // सत् पुरुषों के द्वारा दिया उपदेश जिस व्यक्ति में स्थिर रह सके वह द्रव्यप्रकृति का पुरुष है।) द्रव्यं हि क्रियां विनयति नाद्रव्यम्॥४०॥ जो द्रव्य प्रकृति का है वही राज्य भोग कर सकता है अद्रव्य प्रकृति का नहीं। यतो द्रव्याद्रव्यप्रकृतिरप्यस्ति कश्चित् पुरुषः संकीर्णगजवत् // 41 // संकीर्ण जाति का गज जिस प्रकार गजराज नहीं हो सकता उसी प्रकार द्रव्य प्रकृति के पुरुषों में भी द्रव्याद्रव्य की सङ्कर प्रकृति का पुरुष राजपद के योग्य नहीं होता। ___बुद्धि के 8 गुण : उन गुणों का निरूपण(शुश्रूषा-श्रवण-ग्रहण-धारणा-विज्ञानोहापोहतत्त्वाभिनिवेशा बुद्धि गुणाः // 42 // बुद्धि के आठ गुण हैं, शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारणा, विज्ञान, ऊह, अपोह और तत्त्वाभिनिवेश / ( इनका स्पष्टीकरण अग्रिम सूत्रों में प्रन्थकार ने स्वयं किया है) (श्रोतुमिच्छा शुश्रूषा // 13 // शास्त्रश्रवण की इच्छा ही शुश्रूषा है। (श्रवणमाकर्णनम् // 44 // . शास्त्रीय प्रसङ्गों का सुनना श्रवण है।