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________________ विद्यावृद्धसमुद्दशः . बिना विचार के क्रोध का फल। अविचार्य परस्यात्मनो वाऽपायहेतुः क्रोधः // 3 // शत्रु को और अपनी शक्ति का विचार न करके क्रोध कर बैठना राजा के नाश का कारण बन जाता हैं। लोभ का स्वरूप(दानाहँषु स्वधनाप्रदानं परधनग्रहणं वा लोभः // 4 // जो दान के योग्य हैं उनको दान न देना और दूसरे के धन को ले लेना लोभ है।) मान का स्वरूप. (दुरभिनिवेशामोक्षो यथोक्ताग्रहणं वा मानः // 5 // दुराग्रह न छोड़ना और शास्त्रोपदेश तथा शिष्टोपदेश को न स्वीकार करना मान है। . मद का स्वरूपकुलबलेश्वर्यरूपविद्यादिभिरात्माहङ्कारकरणं परप्रकर्षनिबन्धनं वा मदः // 6 // ... कुल, पल, ऐश्वर्य, रूप और विद्या आदि का अपने में अहङ्कार रखना और दूसरे के उत्कर्ष और अभ्युदय का खण्डन करमा मद हैं। हर्ष का स्वरूप: निनिमित्तमन्यस्य दुःखोत्पादनेन स्वस्यार्थसंचयेन वा मनः प्रतिरजनो हर्षः // 7 // बिना कारण हो दूसरों को दुःख देना और अर्यसंग्रह से पुलकित होना हर्ष है। . इत्यरिषड्वर्गसमुहेशः 5. विद्यावृद्धसमुद्देशः राजा का लक्षणयोऽनुकूलप्रतिकूलयोरिन्द्रयमस्थानं स राजा // 1 // . जो अपने अनुफूल आचरण करने वालों के प्रति इन्द्र के समान सुखदायक हो सके और प्रतिकूल आचरण करने वालों के प्रति यमराज के समान कठोर .. दण्ड दे सके वह राजा है। राजा का धर्मराज्ञो हि दुष्टनिग्रहः शिष्टपरिपालनं च धर्मः॥२॥) . दुष्टों का दमन और शिष्ट पुरुषों की रक्षा राजा का कर्तव्य है।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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