________________ .14 नीतिवाक्यामृतम् . स्त्रियों पर अत्यासक्ति के दोष(न तस्य धनं धर्मः शरीरं वा यस्यास्ति स्त्रीष्वत्यासक्तिः // 12 // स्त्रियों पर अत्यन्त आसक्त पुरुष के धन धर्म और शरीर का क्षय हो जाता है। परस्त्रीगमन के दोष--- (विरुद्धकामवृत्तिः समृद्धोऽपि न चिरं नन्दति // 13 // ). विरुद्ध कामवृत्ति अर्थात् परस्त्री में रत पुरुष समृद्धिशाली होते हये भी चिरकाल तक समृद्धि का उपभोग नहीं कर पाता। धर्म अर्थ और काम की क्रमिक श्रेष्ठताधर्मार्थकामानां युगपत्समवाये पूर्वः पूर्वो गरीयान् / / 14 // धर्म, अर्थ और काम इन तीनों का कार्य एक साथ प्राप्त होने पर क्रमशः पूर्व-पूर्व गुरुतर है काम की अपेक्षा अर्थ और अर्थ की अपेक्षा धर्म का सेवन श्रेष्ठ है। समयानुसार अर्थसेवन को प्रधानताकालसहत्वे पुनरर्थ एव / / 15 // (धर्मकामयोरथमूलत्वात् )) , यदि धर्म, अर्थ और काम का कत्र्तव्य एक साथ उपस्थित हो और धर्म तथा काम के कर्तव्य का पालन समयान्तर में भी किया जा सकता हो तो अर्थ-कर्तव्य को ही प्रधानता देनी चाहिए क्योंकि अर्थ समुद्देश के प्रारम्भ में ही कहा गया है-यतः सर्व प्रयोजन सिद्धिः सोऽर्थः / द्रव्य होने पर ही धर्म और काम का सुचारु-संपादन हो सकता है।) . इति कामसमुद्देशः 4. अरिषड्वर्गसमुद्देशः राजाओं के छः आभ्यन्तर शत्रु(अयुक्तितः प्रणीताः काम-क्रोध-लोभ-मद-मान-हर्षाः क्षितीशानामन्तरङ्गोऽरिषड्वर्गः // 1 // युक्ति-पूर्वक प्रयोग न करने पर राजाओं के लिये काम, क्रोध, लोभ, मद मान और हर्ष ये छह भीतरी शत्रुसमूह हैं / __कामासक्ति का दोष(परपरिगृहीतासु, अनूढासु च स्त्रीषु दुरभिसन्धिः कामः // 2 // दूसरे के द्वारा ग्रहण की गई स्त्री अथवा कुमारी कन्या पर आसक्ति ही काम है।)